प्रस्तावना
आज कृषि में मशीनों को विकास का प्रतीक माना जाने लगा है। ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और विचारणीय
अन्य यंत्रों को देखकर कहा जाता है कि खेती आधुनिक हो गई है। लेकिन एक सवाल बार‑बार सामने आता है—क्या हर मशीन सच में प्रगति लाती है?
कल्टीवेटर को भी इसी “प्रगति” के नाम पर स्वीकार कर लिया गया, जबकि इसके दूरगामी सामाजिक और सांस्कृतिक परिणामों पर शायद ही कभी गंभीर चर्चा हुई। यह लेख उसी अनदेखे सच को सामने लाने का प्रयास है।
परंपरागत खेती और गोवंश का अटूट संबंध
भारतीय कृषि केवल अन्न उत्पादन का माध्यम नहीं रही, बल्कि यह एक जीवंत ग्रामीण व्यवस्था थी।
बैल हल खींचते थे
गाय दूध देती थी
गोबर खाद और ऊर्जा का स्रोत था
गोपालक, लोहार, बढ़ई और किसान—सबका रोज़गार इससे जुड़ा था
यह व्यवस्था केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संतुलन भी बनाए रखती थी।
कल्टीवेटर का आगमन: संतुलन पर चोट
ट्रैक्टर के साथ कल्टीवेटर जुड़ते ही खेती की गति तो बढ़ी, लेकिन साथ ही बैल और गोवंश की उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न लग गया।
जहाँ पहले बैल खेत की रीढ़ थे, वहीं अब उन्हें “अनावश्यक” माना जाने लगा। यह बदलाव धीरे‑धीरे गांवों की सामाजिक संरचना को खोखला करने लगा।
गोपालकों की बढ़ती बेरोज़गारी
जब बैल खेतों से बाहर हुए, तो गोपालक भी बाहर हुए।
पशुपालन से आय घटी
चारा उगाने की परंपरा टूटी
नस्ल संरक्षण समाप्त होने लगा
लाखों परिवार, जिनकी आजीविका गोवंश पर आधारित थी, बेरोज़गारी और पलायन की ओर धकेल दिए गए।
गोवंश पर सीधा और दर्दनाक प्रभाव
जब कोई पशु “आर्थिक रूप से बेकार” घोषित कर दिया जाए, तो उसका भविष्य क्या होता है—यह किसी से छुपा नहीं।
गोशालाओं पर बढ़ता बोझ
सड़कों पर बेसहारा गोवंश
दुर्घटनाएँ और उपेक्षा
यह केवल प्रशासनिक समस्या नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना का संकट है।
अप्रत्यक्ष लेकिन खतरनाक सच
जब समाज यह मान ले कि गोवंश की कोई उपयोगिता नहीं रही, तब शोषण और हिंसा के रास्ते अपने‑आप खुल जाते हैं।
यहाँ कल्टीवेटर केवल एक मशीन नहीं रह जाता—यह उस सोच का प्रतीक बन जाता है, जहाँ सुविधा के आगे संवेदना हार जाती है।
क्या इसे ही प्रगति कहते हैं?
प्रगति का अर्थ केवल तेज़ी नहीं होता।
क्या किसान आत्मनिर्भर हुआ?
क्या गांव मजबूत हुआ?
क्या प्रकृति और पशु सुरक्षित रहे?
अगर इन सवालों के जवाब नकारात्मक हैं, तो ऐसी प्रगति पर पुनर्विचार ज़रूरी है।
समाधान की दिशा
समस्या का समाधान मशीनों को पूरी तरह नकारना नहीं, बल्कि संतुलन बनाना है।
गोवंश‑आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा
बैल‑चलित आधुनिक उपकरणों का विकास
गोपालकों के लिए नीति और आर्थिक संरक्षण
खेती को उद्योग नहीं, जीवन‑पद्धति मानने की सोच
निष्कर्ष
कल्टीवेटर कोई साधारण कृषि यंत्र नहीं है—यह एक चेतावनी है।
अगर हमने गोवंश को खो दिया, तो केवल एक पशु नहीं, बल्कि गांव, संस्कृति और संतुलन खो देंगे।
बेरोज़गारी बढ़ी, गोवंश घटा—इसे प्रगति मत कहो।
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