घमंडी खरगोश और कछुआ की प्रतियोगिता
एक बार एक खरगोश और कछुए के बीच इस बात पर बहस हो गई की कछुआ बहुत धीमी गति से चलता है। खरगोश को अपनी गति पर गर्व था। इसलिए वह हमेशा कछुआ की धीमी गति को देखकर उसका मजाक उड़ाता था। वह कहता था कि घोंघे की गति से चलने वाला कछुआ भी कभी मेरा मुकाबला कर सकता है क्या! खरगोश के बार बार ताने को सुनकर एक दिन कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।
प्रतियोगिता का आरम्भ
प्रतियोगिता के लिए एक स्थान निश्चित किया गया। नियत समय पर दोनों एक ही स्थान से दौड़ लगाने थे । कछुआ दो-चार कदम ही चल पाया, खरगोश हवा से बात करते-करते उसकी नजरों से ओझल हो गया।
खरगोश पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि कछुआ कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। वह हँसा और बोला, "इस कछुआ को चार कदम चलने में भी घंटों लग जाते हैं। उसने सोचा कि यह कछुआ अभी बहुत पीछे है। जब तक वह यहाँ पहुँचता है, मुझे आराम करना चाहिए, जब वह दिखने लगेगा तो मैं शीघ्र छलाँग लगाकर अपनी मंजिल पर पहुँच जाऊँगा । यह सोचकर पेड़ के नीचे बैठ गया। पेड़ के नीचे बैठे बैठे उसे नींद आ गयी और वह सो गया।
घमंडी खरगोश की हार
कुछ देर बाद कछुआ रेंग कर उस जगह पहुंच गया जहां खरगोश सो रहा था। वह बहुत खुश हुआ और अपने रास्ते चला गया और गंतव्य पर पहुंच गया।
इधर कुछ देर बाद खरगोश की नींद खुली तो उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे कोई नजर नहीं आया, वह खुशी-खुशी मंजिल की ओर चल पड़ा। थोड़ी ही देर बाद वह निर्धारित जगह पर पहुँच गया। लेकिन वहाँ पहुँचकर उसे बहुत शर्म आई। क्योंकि कछुआ वहाँ पहले ही पहुँच ही चुका था। यह देख खरगोश का अभिमान चकनाचूर हो गया।
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