पुनर्मूषिको भव - अर्थात् फिर से चूहा जाओ
पुनर्मूषिको भव ->यह कथा बहुत महत्वपूर्ण और शिक्षाप्रद है। यह कहानी एक कृतघ्न चूहे के प्रति है जो ऋषि के आशीर्वाद से बाघ बन गया और फिर ऋषि पर आक्रमण करने से ऋषि ने शाप देकर उसे फिर चूहा बना दिया। इस कहानी से हमें कृतज्ञता की शिक्षा मिलती है।
एक बार जंगल में आश्रम बनाकर एक ऋषि रहते थे। ऋषि की कुटिया के आस पास काफी पवित्र वातावरण था। ऋषि के प्रभाव से सारे जीव वहां निर्भय होकर रहते थे। एक दिन ऋषि पूजा के आसान पर बैठे थे तभी एक चूहा उनकी गोद में आकर गिर पड़ा। चूहा भयभीत था उसे किसी बिल्ली ने मारकर खाने के लिए पीछा किया था।
ऋषि ने चूहा को दुखी देखा तो सोचा अगर इसी बिल्ली से भय है तो ये भी बिल्ली हो जाए। ऋषि ने उस चूहे को भी बिल्ली बना दिया। अब उस बिल्ली बने चूहे को बिल्ली से भय नहीं रही. आश्रम के इर्द गिर्द सुखपूर्वक विचरण करता .
एक दिन किसी कुत्ते ने उस बिल्ली का पीछा किया। बिल्ली भागते भागते ऋषि के शरण में आयी। ऋषि ने उससे परेशानी का कारण पूछा। बिल्ली ने कहा की कुत्ते मुझे डराते हैं।
ऋषि ने कहा "स्वानः त्वाम विभेति! त्वमपि स्वानोभाव " अर्थात कुत्ता तुम्हे डरा रहा है तुम भी कुत्ता हो जाओ।
ऋषि के आशीर्वाद से बिल्ली बना चूहा अब कुत्ता हो गया। अब उसे कुत्ते बिल्लियों से कोई डर नहीं रहा।
एक दिन कुत्ते पर ब्याघ्र (बाघ ) की नजर पड़ी. बाघ ने कुत्ते को खाने के लिए उसका पीछा किया। बाघ की डर से कुत्ता भाग कर ऋषि की शरण में जा पहुँचा।
ऋषि ने कुत्ते को बाघ को डर से भयभीत देखा ->
ऋषि बोले "ब्याघ्र: त्वम् विभेति! त्वमपि ब्याघ्रों भव"
अर्थात बाघ तुम्हे डरातें हैं तुम भी बाघ हो जाओ। अब ऋषि के आशीर्वाद से वह बाघ बन गया।
ऋषि के आशीर्वाद से बने बाघ को अब किसी जानवर से डर नहीं था। वह जंगल में निर्भय हो घूमता था।
ऋषि के आशीर्वाद से बने बाघ को अब किसी जानवर से डर नहीं था। वह जंगल में निर्भय हो घूमता था।
जंगल के दूसरे जानवर उसके बारे में बाते करते की ये बाघ पहले चूहा था। ऋषि ने इसे आशीर्वाद /वरदान देकर बाघ बना दिया है। बाघ को अपने बारे में दूसरे जानवरों से ऐसा सुनकर बहुत बुरा लगता। जब भी कोई उसे कहता की ये तो पहले चूहा था ऋषि के वरदान से बाघ बना है। तो बात बहुत लज्जित हो जाता।
बाघ अपने सारी परेशानी का जड़ ऋषि को मानाने लगा। बाघ ने समझा की जबतक ये ऋषि जीवित है लोग मेरे बारे में ऐसे ही बोलते रहेंगे। इस ऋषि को खत्म कर देना चाहिए। ऐसा विचार कर वह कृतघ्न बाघ ऋषि पर आक्रमण कर दिया। ऋषि ने बाघ की कुटिलता को पहचान लिया। ऋषि ने कहा- "कृतघ्नोसि पुनर्मूषिको भव" अर्थात कृतघ्न हो फिर से चूहा हो जाओ। इसतरह कृतघ्न बाघ ऋषि के शाप से फिर से चूहा बन गया।
बाघ अपने सारी परेशानी का जड़ ऋषि को मानाने लगा। बाघ ने समझा की जबतक ये ऋषि जीवित है लोग मेरे बारे में ऐसे ही बोलते रहेंगे। इस ऋषि को खत्म कर देना चाहिए। ऐसा विचार कर वह कृतघ्न बाघ ऋषि पर आक्रमण कर दिया। ऋषि ने बाघ की कुटिलता को पहचान लिया। ऋषि ने कहा- "कृतघ्नोसि पुनर्मूषिको भव" अर्थात कृतघ्न हो फिर से चूहा हो जाओ। इसतरह कृतघ्न बाघ ऋषि के शाप से फिर से चूहा बन गया।
*कृतज्ञ -जो किसी के किये गए उपकार को मानता हो ।
*कृतघ्न -जो किसी के किये गए उपकार को नहीं मानता हो।
कृतघ्न चूहे की कहानी - ऋषि और चूहा
*कृतघ्न -जो किसी के किये गए उपकार को नहीं मानता हो।
कृतघ्न चूहे की कहानी - ऋषि और चूहा
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
हमें किसी के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। अर्थात हमें अपने उपर किए गए किसी उपकार को याद रखना चाहिए।
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3 टिप्पणियाँ
Respected sir maina,chiti,hiran KO Hindi me kya kahenge
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंIse hame kya sikh milti hai
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