प्राचीन समय की बात है, एक राजा अपने मंत्री के साथ नदी के किनारे टहल रहा था। राजा ने मंत्री से पूछा, "मंत्री जी, इस नदी में इतना सारा पानी है, यह किस काम आता है?"
मंत्री ने उत्तर दिया, "महाराज, नदी का पानी सिंचाई के काम आता है। इससे नहरें निकाली जाती हैं, और किसान अपनी भूमि की सिंचाई करते हैं।"
राजा ने उत्सुकता से पूछा, "नहर कैसे बनाई जाती है?"
मंत्री ने समझाया, "राजन, नदी में एक किवाड़ लगाकर पानी को रोका जाता है। फिर जल प्रवाह के स्तर को ऊपर उठाकर नहर में पानी भेजा जाता है। इस तरह नहर के पानी से किसान अपनी फसलों को सींचते हैं।"
राजा ने अगला प्रश्न किया, "क्या नदी का सारा पानी नहर में चला जाता है?"
मंत्री ने उत्तर दिया, "नहीं महाराज, केवल उतना ही पानी लिया जाता है जितना जरूरी होता है। बाकी पानी नदी में बहता हुआ आगे के देशों में चला जाता है।"
यह सुनकर राजा ने पूछा, "यह बाकी का पानी किस देश में जाता है?"
मंत्री ने कहा, "महाराज, यह पानी पूरब देश में चला जाता है।"
राजा ने पूछा, "पूरब देश वाले हमारे मित्र हैं या शत्रु?"
मंत्री ने कहा, "महाराज, पहले वे हमारे मित्र थे, लेकिन अब वे हमसे शत्रुता का भाव रखते हैं।"
यह सुनकर राजा क्रोधित हो गया। उसने आदेश दिया, "हम पूरब देश में पानी नहीं जाने देंगे। हमारे शत्रु हमारी सहायता के पानी का उपयोग करके हमें कमजोर नहीं बना सकते।"
राजा के आदेश से नदी का सारा पानी रोक दिया गया। लेकिन इसके दुष्परिणाम जल्द ही सामने आने लगे। पानी रुकने से शहरों में बाढ़ आ गई, और लोग परेशान हो उठे।
लोगों ने मंत्री से प्रार्थना की, "मंत्री जी, कृपया कुछ उपाय कीजिए।"
मंत्री ने लोगों को आश्वासन दिया और राजा के सामने एक योजना प्रस्तुत की। उसने उस व्यक्ति को निर्देश दिया जो राजा को जगाने के लिए सुबह-सुबह अलार्म की घंटी बजाता था।
मंत्री ने कहा, "तुम आज अलार्म की घंटी तीन घंटे पहले बजाना।" hindi हिंदी कहानी
अगले दिन, नियत समय से पहले राजा जागा। उसने जब देखा कि सूरज नहीं निकला है, तो उसने घबराकर मंत्री से पूछा, "मंत्री जी, आज सूरज क्यों नहीं निकला?"
मंत्री ने उत्तर दिया, "महाराज, आपने पूरब देश में नदी का पानी रोक दिया है, इसलिए उन्होंने सूरज को रोक लिया है।"
यह सुनकर राजा चिंतित हो गया। उसने मंत्री से पूछा, "अगर हम नदी का पानी पूरब देश में जाने दें, तो क्या वे सूरज को हमारे देश में लौटने देंगे?"
मंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां महाराज।"
राजा ने तुरंत आदेश दिया कि नदी का पानी फिर से बहने दिया जाए। जैसे ही पानी पूरब देश में पहुँचा, सूरज उग आया। सूरज को देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी गलती स्वीकार की।
उस दिन राजा ने सीखा कि प्रकृति की व्यवस्था में हस्तक्षेप करना विनाशकारी हो सकता है, और सहयोग से ही सच्ची प्रगति संभव है।
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