रमा एकादशी व्रत 9 नवम्बर 2023 - व्रत उपवास विधि और पारण का समय
रमा एकादशी व्रत 9 नवम्बर 2023 को मनाया जाएगा. इस व्रत की उपवास और पूजा की विधि निम्नलिखित है:
रमा एकादशी व्रत की उपवास विधि:
व्रत की तैयारी: व्रत की तैयारी शुरू करने से पहले दिन की तरह नींद पूरी करें और अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखें.
व्रत आरंभ: व्रत की अनुष्ठान का समय सूबह सूर्योदय के बाद होता है। आपको इस समय से उपवास रखना होगा.
पूजा: व्रत का आरंभ करने के बाद, भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा करें। आप तुलसी पूजा भी कर सकते हैं.
व्रत का खाना: व्रत के दौरान आपको अन्न, दाना, अंडा, मांस, शाकाहारी आदि का त्याग करना होगा. आप सिर्फ फल, सुपारी, सिंघाड़ा के आटे के अन्न खा सकते हैं.
व्रत का विधान: व्रत के दौरान मन और वचन से भगवान का भजन करें और दुष्ट विचारों से दूर रहें.
रमा एकादशी व्रत पारण समय:
रमा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन, यानी 10 नवम्बर 2023, को सूबह किया जाता है. यह व्रत अगले दिन के सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण करते समय आपको भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का विधान पूरा करना चाहिए, और फिर अन्न खा सकते हैं.
यह व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मदद कर सकता है और पापों का नाश करने में सहायक हो सकता है।
एकादशी व्रत का चमत्कार
विष्णु जी के परम भक्त और सत्यवादी राजा, मुचुकुंद, एक समृद्ध और धार्मिक राज्य में शासन करते थे। उनके राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे। यहीं नहीं, उनके राज्य के जानवर भी एकादशी के व्रत का पालन करते थे।
राजा की एक कन्या चंद्रभागा भी अपने पति राजा शोभन के साथ एकादशी का व्रत बहुत भक्ति और निष्ठा से करती थी। एक दिन, चंद्रभागा ने सोचा कि उसके पति शोभन ने कभी एकादशी का व्रत नहीं किया, जिससे उन्हें राज्य छोड़ना पड़ सकता है।
इसे सुनकर, शोभन ने भी तत्काल एकादशी का व्रत रखने का निर्णय लिया, लेकिन व्रत के पारण से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रभागा, अपने पति के निधन से दुखी होकर, पिता के पास रहकर ही भगवान की पूजा-पाठ में लीन हो गई।
एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन को अगले जन्म में देवपुर नगरी का राजा बन गया, जहां उसे किसी प्रकार की कमी नहीं थी। एक दिन, राजा मुचुकुंद के नगर के एक ब्राह्मण ने शोभन को पहचान लिया और उसे चंद्रभागा की खबर सुनाई।
चंद्रभागा बहुत खुश हो गई और शोभन को वापस बुलाया। उन्होंने एक साथ व्रत के महत्व और परिणाम के बारे में चर्चा की। चंद्रभागा ने शोभन को उसके पुण्य का हिस्सा समझा और देवपुर नगरी में सुख-संपदा की वृद्धि हो गई। उनकी यह मिलनसारी कहानी देवपुर में सुख-संपदा की वृद्धि का अद्भुत प्रमाण थी। इसके बाद चंद्रभागा और शोभन एक साथ खुशी-खुशी रहने लगे।
यह कथा हमें धार्मिकता और भक्ति के महत्व को समझाती है, और बताती है कि एक व्यक्ति अपने जीवन में धर्मिकता और भगवान के प्रति अपनी निष्ठा के माध्यम से कितना महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है।
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