शिक्षा और संस्कार की कहानी - shiksha aur sanskar ki kahani

 एक बार की बात है, एक गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति रहता था। उसका नाम रामलाल था। रामलाल एक बहुत ही विद्वान और सम्मानित व्यक्ति था। उसने अपने जीवन में कई पुस्तकें पढ़ी और लिखी थी। उसके दो बेटे थे, रामेश और सुरेश। रामेश अपने पिता की तरह एक विद्वान और संस्कारी लड़का था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी नौकरी पाई। सुरेश भी अपनी पढ़ाई पूरी की, लेकिन उसमें संस्कार की कमी थी। उसने अपने पिता का सम्मान नहीं किया और उससे दूर चला गया।



एक दिन, रामलाल को एक बीमारी हो गई। उसने अपने बेटों को बुलाया। रामेश तुरंत आया और अपने पिता का ख्याल रखने लगा। सुरेश ने अपने पिता का फोन नहीं उठाया और उसका कोई जवाब नहीं दिया। रामलाल की हालत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती गई। रामेश ने अपने पिता को अस्पताल ले जाया और उनका इलाज करवाया। लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। रामलाल की आखिरी सांसें थीं। उसने अपने बेटे रामेश को अपने पास बुलाया और उससे कहा, "बेटा, मुझे तुम पर गर्व है। तुमने मुझे हमेशा सम्मान और प्यार दिया। तुमने अपनी शिक्षा का सदुपयोग किया और अपने आप को एक अच्छा इंसान बनाया। तुम मेरा वारिस हो। तुम्हें मेरा सारा संपत्ति मिलेगी। लेकिन तुम अपने भाई सुरेश को भी याद रखना। वह भी मेरा बेटा है। वह शायद अपनी गलतियों का एहसास करे और तुम्हारे पास आए। तुम उसे माफ कर देना और उसका साथ देना। तुम दोनों एकजुट रहना और अपने परिवार का नाम रोशन करना।" रामेश ने अपने पिता के हाथ पकड़े और रोते हुए कहा, "पिताजी, आप चिंता न करें। मैं आपकी बात मानूंगा। मैं अपने भाई को भी प्यार और सम्मान दूंगा। मैं आपकी इच्छा पूरी करूंगा।" रामलाल ने अपने बेटे को आशीर्वाद दिया और फिर उसकी आँखें बंद हो गईं।


कुछ दिनों बाद, सुरेश को अपने पिता के निधन का पता चला। उसने अपने भाई को फोन किया और उससे माफी मांगी। उसने कहा, "भाई, मुझे माफ कर दो। मैंने अपने पिता का सम्मान नहीं किया। मैंने उनकी बात नहीं मानी। मैंने अपनी शिक्षा का दुरुपयोग किया और अपने आप को एक बुरा इंसान बनाया। मुझे अब पछतावा हो रहा है। मुझे अपने पिता को एक बार देखना था। मुझे उनसे माफी मांगनी थी। लेकिन अब वह नहीं रहे। मुझे अपने आप को कोसने के सिवाय और कुछ नहीं बचा।" रामेश ने अपने भाई को समझाया और उसे दिलासा दिया

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