सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, ये तीनों गुण मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं। ये गुण अत्यंत सूक्ष्म होते हैं और इन्हीं के समन्वय से ‘कारण-शरीर’ का गठन होता है। यह कारण शरीर वह मूलभूत अवस्था है, जिससे आगे के शरीर उत्पन्न होते हैं।
जब इस कारण शरीर से अगला शरीर विकसित होता है, तो उसे ‘सूक्ष्म शरीर’ कहा जाता है। इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं: मान लीजिए, आपने अपने शरीर पर सूती कुर्ता पहन रखा है। यह कुर्ता धागे से बना है और धागा रूई से। इस प्रकार, रूई, धागा और कुर्ता तीन अलग-अलग अवस्थाएँ हैं। इसी तरह, हमारे तीन शरीर होते हैं: स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। स्थूल शरीर कुर्ता के समान है, सूक्ष्म शरीर धागे के समान और कारण शरीर रूई के समान है।
जिस प्रकार बिना रूई के धागा नहीं बन सकता और बिना धागे के कुर्ता नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना कारण शरीर के सूक्ष्म शरीर नहीं बन सकता और बिना सूक्ष्म शरीर के स्थूल शरीर नहीं बन सकता। कारण शरीर प्रकृति के सत्त्व, रज और तम से मिलकर बना होता है। इन तीनों गुणों से अठारह तत्व उत्पन्न होते हैं, जो सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं।
सृष्टि के आरंभ में, भगवान ने कारण शरीर प्रकृति से अठारह पदार्थ उत्पन्न किए थे: बुद्धि, अहंकार, मन, पाँच ज्ञानेंद्रियाँ { कान, त्वचा, आंखें, जीभ और नाक }, पाँच कर्मेंद्रियाँ {मुंह, हाथ, लिंग, गुदा और पैर } और पाँच तन्मात्राएँ { ध्वनि (शब्द), स्पर्श (स्पर्श), दृष्टि (रूप), स्वाद (रस), गंध (गंध)}। ये सभी तत्व मिलकर सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं। तन्मात्राओं से पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं: जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। इन पाँच महाभूतों से स्थूल शरीर का निर्माण होता है, जो हमें प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
जीवात्मा जब तक पुनर्जन्म धारण करता रहता है, तब तक वह एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को धारण करता है। मृत्यु के समय स्थूल शरीर छूट जाता है, लेकिन सूक्ष्म और कारण शरीर जीवात्मा के साथ जुड़े रहते हैं। पुनर्जन्म होने पर जीवात्मा को एक नया स्थूल शरीर मिल जाता है, और यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति के बाद, तीनों शरीर छूट जाते हैं, जैसे धागा वही रहता है लेकिन कुर्ते बदलते रहते हैं।
इस प्रकार, सत्त्व, रज और तम के समन्वय से उत्पन्न इन तीनों शरीरों का गहरा और आपस में जुड़ा हुआ संबंध होता है, जो जीवन और मृत्यु के चक्र को चलाते रहते हैं।
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