बैशाख कृष्ण पक्ष २ जून २०२४: अचला एकादशी, जलक्रीड़ा एकादशी और भद्रकाली एकादशी पर विशेष - achala ekadashi baishak krishn paksh 2 jun3 2024

२ जून २०२४ को बैशाख कृष्ण पक्ष की अचला एकादशी, जलक्रीड़ा एकादशी और भद्रकाली एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। आइए, इन पावन एकादशियों के महत्व और विशेषताओं के बारे में जानते हैं।



१. अचला एकादशी: 

अ१.चला एकादशी, जिसे अपरा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर भक्त उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवन में स्थिरता और संतोष की तलाश में हैं।

व्रत और पूजा विधि:

  1. प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर पूजा करें।
  3. तुलसी दल, पुष्प, और फल अर्पित करें।
  4. विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भजन-कीर्तन करें।
  5. दिन भर निराहार व्रत रखें और संभव हो तो रात्रि जागरण करें।

अचला एकादशी व्रत कथा:

अचला एकादशी, जिसे अपरा एकादशी भी कहा जाता है, का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए, इस पावन व्रत की कथा जानते हैं।

प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगर में सुमेधा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्राह्मण बहुत ही निर्धन था, जिसके कारण उसे और उसकी पत्नी को अनेकों कष्टों का सामना करना पड़ता था। सुमेधा की पत्नी पावनी बहुत ही पतिव्रता और धर्मनिष्ठ थी। एक दिन पावनी ने अपने पति से कहा, "स्वामी, हमारी यह दरिद्रता अब सहन नहीं होती। आप किसी संपन्न व्यक्ति के घर जाकर कुछ धन प्राप्त करने का प्रयास करें।"

सुमेधा ने उत्तर दिया, "प्रिय, हमें अपने भाग्य पर संतोष करना चाहिए। धन की प्राप्ति के लिए किसी दूसरे के आगे हाथ फैलाना उचित नहीं है। हमें भगवान का स्मरण और पूजा करनी चाहिए, वही हमारी सहायता करेंगे।"

एक दिन सुमेधा और उसकी पत्नी पावनी अपने दुखों से त्रस्त होकर वन की ओर जाने लगे। रास्ते में उन्हें महर्षि कौंडिण्य मिले। महर्षि ने उन दोनों के चेहरे पर चिंता की रेखाएं देखीं और उनके दुख का कारण पूछा। सुमेधा ने अपनी दरिद्रता और कष्टों का सारा विवरण महर्षि को बताया।

महर्षि कौंडिण्य ने कहा, "हे ब्राह्मण, तुम्हारी दरिद्रता का नाश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए अचला एकादशी का व्रत सबसे श्रेष्ठ है। इस व्रत के पालन से तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम्हें धन-धान्य की प्राप्ति होगी।"

महर्षि कौंडिण्य ने अचला एकादशी की महिमा बताते हुए कहा, "भगवान श्री विष्णु की कृपा से अचला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है।"

सुमेधा और पावनी ने महर्षि की सलाह मानकर श्रद्धा और भक्ति के साथ अचला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनकी दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख-समृद्धि से भर गए। उनके जीवन में खुशियों का आगमन हुआ और वे धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।


२ जलक्रीड़ा एकादशी: 

जलक्रीड़ा एकादशी का भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह दिन जल तत्व की महत्ता को रेखांकित करता है। इस दिन व्रत रखने वाले जल से जुड़े कार्यों में हिस्सा लेते हैं, जैसे नदी या तालाब में स्नान करना और जलाशयों की सफाई करना।

व्रत और पूजा विधि:

  1. प्रातः स्नान के बाद जल से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
  2. जल से संबंधित दान करें, जैसे जल कलश, जलाशयों की सफाई के लिए आर्थिक सहायता आदि।
  3. दिन भर जल का सेवन करें लेकिन अन्य आहार से परहेज करें।

३ भद्रकाली एकादशी: 

भद्रकाली एकादशी देवी भद्रकाली की आराधना का दिन है। यह व्रत देवी के भक्तों के लिए विशेष महत्त्व रखता है और उनकी कृपा प्राप्त करने का उत्तम अवसर प्रदान करता है। देवी भद्रकाली को शक्ति और सुरक्षा की देवी माना जाता है।

व्रत और पूजा विधि:

  1. प्रातःकाल स्नान के बाद देवी भद्रकाली की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  2. लाल वस्त्र, लाल पुष्प, और नैवेद्य अर्पित करें।
  3. दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य का पाठ करें।
  4. दिन भर व्रत रखें और देवी की आराधना में लीन रहें।

सार: २ जून २०२४ का दिन अचला एकादशी, जलक्रीड़ा एकादशी और भद्रकाली एकादशी का संगम है। यह दिन भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नति, पापों से मुक्ति और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है। आइए, इस पावन दिन को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाएं और अपने जीवन को पवित्र और मंगलमय बनाएं।

आप सभी को एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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