संस्कृत संवाद: प्राचीन भारत में ब्राह्मण और सर्प की कथा - Sanskrit samvad: Prachin Bharat me Brahman aur sarp ki katha

राजा भोज के दरबार में लकड़ी काटने वाले भी संस्कृत बोला करते थे। प्राचीन भारत में यहाँ तक कहानी मिलती है कि पशु, पक्षी और सरीसृप भी संस्कृत में वार्तालाप किया करते थे। एक बार जंगल की पगडंडी से जाते हुए एक ब्राह्मण को एक सर्प दिखा। ब्राह्मण ने सर्प से पूछा, "क त्वम्?" (अर्थात, तुम कौन हो?) प्रत्युत्तर में सर्प ने कहा, "सपोऽहम्" (अर्थात, मैं सर्प हूँ)। इस पर ब्राह्मण ने पूछा, "विसर्गस्य गति: कुत्र?" (अर्थात, विसर्ग का उच्चारण कहाँ गया?) सर्प ने उत्तर दिया, "तव मुखे" (अर्थात, आपके मुख में)।



इस पर ब्राह्मण ने कहा, "हे सर्प, तूने विसर्ग का उच्चारण क्यों नहीं किया?" सर्प ने उत्तर दिया, "ब्राह्मण देवता, आपने विसर्ग का उच्चारण नहीं किया तो मैंने भी नहीं किया।"

यह कहानी दर्शाती है कि प्राचीन भारत में संस्कृत भाषा का कितना महत्व था और इसे कितनी गंभीरता से लिया जाता था, यहाँ तक कि जंगल में रहने वाले सर्प भी संस्कृत भाषा में संवाद करते थे और व्याकरण के नियमों का पालन करते थे। यह भाषा ज्ञान और संस्कार का अद्भुत उदाहरण है, जो कि प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिक्षा प्रणाली की उन्नति को दर्शाता है।

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