सीखने की कोई उम्र नहीं होती

दीनू काका का चेहरा झुर्रियों से भरा था, लेकिन उनकी आँखों में आज भी एक अलग चमक थी। उम्र लगभग 68 साल, पर मन से बिल्कुल बच्चे जैसे। दिन भर खेत में मेहनत करते, बैलों से बातें करते और शाम को चौपाल पर बैठकर पुराने किस्से सुनाते।

लेकिन एक बात हमेशा उनके मन में चुभती थी—उन्हें कभी स्कूल जाने का मौका नहीं मिला था। जब वो छोटे थे, तब घर की हालत ऐसी नहीं थी कि पढ़ाई की सोची जाती। और अब? अब तो लोग कहते हैं—“इस उम्र में पढ़कर क्या करोगे?”


एक दिन गाँव में एक नई चीज़ आई—डिजिटल शिक्षा केंद्र। लोग वहाँ मोबाइल, लैपटॉप पर कुछ सीख रहे थे।
काका ने पहली बार अपनी आँखों से एक मशीन को इंसानों से बात करते देखा।
उन्होंने हैरानी से पूछा—
अरे भाई, ये क्या कर रहे हो तुम लोग?”
शिक्षक बोले,
काका, ये AI है। इससे आप जो चाहें पूछ सकते हैं, पढ़ सकते हैं। कोई उम्र नहीं लगती इसमें।

काका हँस दिए,
“हमसे तो मोबाइल भी ठीक से नहीं चलता, AI से क्या पढ़ाई करेंगे?”

शिक्षक ने बड़ी सादगी से जवाब दिया—
सीखने की शुरूआत डर से नहीं, जिज्ञासा से होती है। बस मन में सीखने की चाह होनी चाहिए।

ये बात सीधी दिल में उतर गई।

अगले ही दिन दीनू काका डिजिटल सेंटर पहुँचे।
डरते डरते बोले,
“AI बहन, मुझे अपना नाम लिखना सिखा दो।”
स्क्रीन पर एक प्यारा सा एनिमेशन आया और जवाब मिला,
ज़रूर काका, हम आज से साथ में पढ़ेंगे।

धीरे-धीरे काका ने न केवल नाम लिखना सीखा, बल्कि मोबाइल से मौसम देखना, खेती के टिप्स लेना और यहाँ तक कि बच्चों को भी पढ़ाना शुरू कर दिया।
अब वो दूसरों को बताते थे—“AI से मत डरिए, इसे दोस्त बनाइए।

एक दिन एक पत्रकार गाँव आया और काका से पूछा,
इस उम्र में पढ़ाई का ख्याल कैसे आया?
काका मुस्कराए और बोले—
जब तक दिल ज़िंदा है, तब तक सीखना बाकी है। उम्र तो बस एक नंबर है। और जगह? वो तो कहीं भी हो सकती है—चाहे खेत हो या ये मोबाइल की स्क्रीन।

उस दिन AI स्क्रीन पर एक लाइन चमक रही थी—
“जब मन सीखने लगे, वही सही वक्त है। जब दिल जगे, वही सही जगह है।”


सारांश:

🌿 सीखने की कोई तय उम्र नहीं होती।
🌿 तकनीक इंसान की दुश्मन नहीं, उसका साथी बन सकती है।
🌿 जहाँ चाह है, वहाँ राह है – चाहे वो 8 साल का बच्चा हो या 68 साल का बुज़ुर्ग।


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