भागवत के कथा के बारे में हम सभी जानते हैं कि ध्यान पूर्वक इसका श्रवण करने से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। उस व्यक्ति को परम पद मोक्ष की प्राप्ति होती है। एक बार एक भागवत कथा वाचक अपने शिष्य को कथा सुना रहे थे। कथा सुनाने के पश्चात स्रोता को वह लाभ नहीं मिला जो परीक्षित को मिला था। स्रोता को अभी भी संसार के विषय बंधन में जकड़े हुए थे। स्रोता ने अपने कथा वाचक गुरु से इसका कारण पूछा।
गुरु भी इसका रहस्य नहीं जान पाए अतः उन्होंने अपने गुरु जी के पास इस समस्या का समाधान जानने के लिए जाने का निश्चय किया। भागवत कथा वाचक अपने शिष्य के साथ गुरु आश्रम में पहुंचे। वहाँ पहुँच कर कथा वाचक गुरु ने अपने गुरु को सादर प्रणाम किया, और भागवत के कथा सुनने से शिष्य को कोई लाभ नहीं होने का कारण पूछा।
गुरु जी ने इन दोनों अतिथियों का यथोचित सत्कार किया। उसके उपरांत अपने शिष्यों से कहकर दोनों के के हाथ पैर बंधवा दिए। अब गुरु से कहा गया की आपका शिष्य बंधन में है इसका बंधन खोलिये। इसपर कथा वाचक गुरु ने कहा मैं तो खुद बंधन में हुए मैं कैसे वंधन खोल सकता हूँ। भागवत कथा वाचक गुरु के शंका का समाधान हो गया था। गुरु ने अपने शिष्य गुरु को समझते हुए कहा जो व्यक्ति खुद मुक्त नहीं है वो किसी को मुक्त नहीं कर सकता। तुम अपने को और तपाओ जब तुम्हे लगे कि तुम्हे कोई विषयों का वंधन नहीं जकड रहा तो तुम भी भगवत कथा के माध्यम से अपने भक्त को विषय विकारों से मुक्त कराकर मोक्ष दिला सकते हो।
राजा परीक्षित को महान तपस्वी शुकदेव जी ने भागवत का कथा सुनाया था। शुकदेव जी खुद बंधन मुक्त थे तभी जाकर परीक्षित को कथा श्रावण का यथोचित लाभ हुआ।
गुरु भी इसका रहस्य नहीं जान पाए अतः उन्होंने अपने गुरु जी के पास इस समस्या का समाधान जानने के लिए जाने का निश्चय किया। भागवत कथा वाचक अपने शिष्य के साथ गुरु आश्रम में पहुंचे। वहाँ पहुँच कर कथा वाचक गुरु ने अपने गुरु को सादर प्रणाम किया, और भागवत के कथा सुनने से शिष्य को कोई लाभ नहीं होने का कारण पूछा।
गुरु जी ने इन दोनों अतिथियों का यथोचित सत्कार किया। उसके उपरांत अपने शिष्यों से कहकर दोनों के के हाथ पैर बंधवा दिए। अब गुरु से कहा गया की आपका शिष्य बंधन में है इसका बंधन खोलिये। इसपर कथा वाचक गुरु ने कहा मैं तो खुद बंधन में हुए मैं कैसे वंधन खोल सकता हूँ। भागवत कथा वाचक गुरु के शंका का समाधान हो गया था। गुरु ने अपने शिष्य गुरु को समझते हुए कहा जो व्यक्ति खुद मुक्त नहीं है वो किसी को मुक्त नहीं कर सकता। तुम अपने को और तपाओ जब तुम्हे लगे कि तुम्हे कोई विषयों का वंधन नहीं जकड रहा तो तुम भी भगवत कथा के माध्यम से अपने भक्त को विषय विकारों से मुक्त कराकर मोक्ष दिला सकते हो।
राजा परीक्षित को महान तपस्वी शुकदेव जी ने भागवत का कथा सुनाया था। शुकदेव जी खुद बंधन मुक्त थे तभी जाकर परीक्षित को कथा श्रावण का यथोचित लाभ हुआ।
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