मक्खीचूस बनिए की कहानी

मक्खीचूस बनिया की कहानी
एक बनिया था। उसका तेल और घी का व्यवसाय था। अपने ग्राहकों को सामान देते समय वो इस बात का ख्याल रखता था कि कही तौल में किसी ग्राहक को ज्यादा सामान तो न दे दिया। उसकी कंजूसी का उसके परिवार वालों तथा नौकर चक्रों को भी पता था।



सुबह उठ कर वह अपने दूकान पर जाता था। दुकान जाते समय वह अपने कुर्ते को कंधे पर रख लेता था और अपने जूते हाथ में ले लेता था। जब जब दूकान नजदीक आता था तो कंधे से कुर्ता उतार कर पहन लेता था, और पैरों से धूल झाड़कर जूते भी पहन लेता था। उसका ऐसा मानना था कि ऐसा करने से उसके कपडे तथा जूते ज्यादा दिन तक चलेंगे।

एक बार साहूकार ने गावँ के ग्वाले से घी खरीदी। सुबह वह घी ले कर अपने दूकान जाने लगा। रास्ते में उसे ख्याल आया की अरे पंखा तो चलता छोड़ आया हूँ अगर वापस जाकर पंखा ऑफ नहीं करता हूँ तो कितने की बिजली बर्बाद हो जायेगी। कंजूस बनिया कंधे पर कुर्ता, एक हाथ में जूते तथा दूसरे हाथ में घी के बर्तन लिए घर की ओर वापस चल पड़ा।  घर पहुंचकर सेठ ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से नौकर ने आवाज लगायी कौन है ? सेठ जी बोले मैं हूँ दरवाजा खोलो। नौकर ने कहा सेठ जी आप वापस क्यों आ गए ? बनिए ने कहा मेरे कमरे का पंखा  अभी भी चल रहा है उसे बंद करना है, तुम दरवाजा खोलो। सेठ से बार बार दरवाजा खोलने से इसके कब्जे घिस जाएंगे वैसे मैंने पंखे बंद कर दिए हैं नौकर ने कहा। कंजूस बनिए को नौकर की ये बात अच्छी  लगी।
बनिया अपने एक हाथ में घी का बर्तन दूसरे हाथ में जूता लिया हुए दूकान पर लौट पड़ा।

मार्ग में वह एक जगह पर विराम किया। उसका मन किया की घी देखूं शुद्ध है की नहीं इसमें देशी घी का सुगंध आता है या नहीं। अतः उसने घी के बर्तन पर से ढक्कन उठाया। जैसे ही वह ढक्कन खोल एक मक्खी घी में पद गयी। बनिए को मक्खी के इस घृष्टता पर बहुत गुस्सा आया। वह मक्खी को घी के बर्तन में से निकल कर उँगलियों से निचोड़ कर सारा घी निकल लिया जमीन  पर उसे फ़ेंक दिया। .कंजूस बनिए को फिर भी संतोष नहीं हुआ उसे लग रहा था कि  मक्खी के शरीर में अब भी घी शेष रह गया है। उसने मक्खी के शरीर से बचा खुचा  घी निकालने का तरकीब सोचा। मक्खी को जमीन पर से उठाया और अपने मुह में रखकर सूचने लगा। तब से कंजूसों के लिए मक्खीचूस शब्द का प्रयोग होने लगा। आज भी जब कोई आदमी कंजूसी की सीमा को पर कर जाता है तो लोग उसे मक्खीचूस की संज्ञा देते हैं।

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