किसी भी वस्तु का सम्पूर्ण ज्ञान जरुरी है

किसी भी वस्तु का समग्र ज्ञान जरुरी है
किसी भी वस्तु व्यक्ति को जानने के लिए उसको समग्र रूप से जानना जरुरी है. बिना समग्र रूप से जाने हमें उसके बारे में सही बोध नहीं हो सकता। एक बार की बात है एक हाथीवान अपने हाथी के साथ जा रहा था। रास्ते में उसे एक गुरु जी मिले . उन्होंने उस महावत को कुछ देर रुकने का आग्रह किया। महावत ने संत सदृश गुरु का आग्रह स्वीकार किया और हाथी को रोक दिया। गुरु जी अपने शिष्यों को उपरोक्त कहे हुए बातों को उदहारण के साथ दिखाना चाहते थे। 

 उन्होंने इसके लिए ४ जन्मांध शिष्य चुने और महावत से हस्ति के विभिन्न अंगों का स्पर्श कराने को कहा :... अब एक एक करके सभी शिष्यों को हाथी को छूकर बताना था की हाथी कैसा होता है 

 १. पहला शिष्य हाथी के सूंढ़ को छुआ और उसने इसे कदली स्तम्भ (केले का तना ) बताया 
 २. दूसरा शिष्य हाथी के पैर को छुवा और उसने इसे दिवार स्तम्भ बताया 
 ३. तीसरे शिष्य ने गज के विशाल पेट को छुआ और कहा की हाथी किसी डेहरी की तरह है
 ४. जब चौथे शिष्य की बारी आयी तो हाथी बैठ चूका था। महावत ने उसे हाथी का कान (हस्ति कर्ण) स्पर्श करने को कहा। चौथे शिष्य ने इसे किसी विशाल सूर्पण अर्थात सूप की तरह है।
 गुरु जी ने महावत को हस्ति के साथ विदा किया. 

 अब गुरु जी ने शशिष्यों से पूछा क्या अब भी कोई भ्रम शेष है? शिष्यों ने एक स्वर में उत्तर दिय:-- जी नहीं गुरु जी !!

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