कालिदास राजा भोज के राज कवि थे। एकबार राजा भोज को यह जानने की इच्छा ही कि मेरे मृत्यु पर कालिदास ऐसी कौन सी कविता कहेंगे मैं तो वह सुन नहीं पाउँगा। राजा भोज राज हठ कर बैठे। कालिदास जीवित राजा के सम्मुख शोक कविता वाचनअपशगुन समझकर मना ककर दिए। राज अवज्ञा के कारण कालिदास का देश निर्वासन हो गया।
बहुत दिन ऐसे ही बीत गया। कालिदास के बिना राजा भोज का मन नहीं लग रहा था। वो राजा भोज को ढूढने स्वयं निकल पड़े वेष बदलकर।
कुछ दिन खोजते खोजते उन्हें एक व्यक्ति दिखा जो कालिदास सदृश दिख रहा था।
राजा भोज उससे अपना असली परिचय बताए बिना मिले।
कालिदास द्वारा धार नगरी और राजा भोज का समाचार पूछने पर ,,,,
राजा भोज नहीं रहे ऐसा मिथ्या वचन कहा।
ऐसा सुनते ही कालिदास बोल पड़े।
कालिदास तो आशुकवि थे।
उनके मुख से अनायास ही ये काव्य शब्द निकल पड़े।
अद्य धरा निराधारा निरालम्बा सरस्वती।
पण्डिताः खण्डिताः सर्वे भोजराज दिवङ्गते ।।
ऐसा कहकर कालिदास मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़े। राजा भोज को अपने मन की कविता सुननी थी सो वो सुन चुके थे। उन्होंने कालिदास को मूर्छा से जगाया और अपना परिचय दिया।
जब कालिदास अपने सामने राजाभोज को देखे तो बहुत खुश हुए। लेकिन शोकाकुल होकर जो काव्य पद जो रच दिए थे उसको कैसे सुधारें ?
आशुकवि कालिदास के लिए क्या असंभव था?
शीघ्र ही कविता रच दिए
अद्य धरा सदाधारा सदा अवलम्बा सरस्वती।
पण्डिताः मण्डिताः सर्वे भोजराज वर्तते ।।
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