भारत में बेरोजगारी अँग्रेज लेकर आए थे - bharat me berojgari angrej lekar aaye the

आज जो समाज में बेरोजगारी व्याप्त है, उसका एक लम्बा इतिहास है। यह सच है कि भारत में बेरोजगारी अंग्रेज लेकर आए थे, लेकिन इसे कोई मानने को तैयार नहीं है।



क्योंकि बेरोजगारी, धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा, असहिष्णुता, ये सभी राजनीति के मैजिक कीवर्ड्स हैं।


अंग्रेजों से पहले मुगल भारत आये थे। उन्होंने बहुत आतंक मचाया था, धर्मान्तरण कराया था। लेकिन, समाज को बेरोजगार नहीं बना पाए थे। मुगल काल में रोजगार के लिए संघर्ष हुआ हो, लोग धरना, प्रदर्शन, आमरण, अनशन किये हों, ऐसा सुनने में नहीं आता। हाँ, संघर्ष था तो अपना धर्म बचाने के लिए भीषण संघर्ष शरीर पर आरी तक चलवाना पड़ा।


जब अंग्रेज भारत में आए तो ये लोग समाज से रोजगार छीनना शुरू किए। नमक, वस्त्र आदि मूलभूत वस्तुएँ जो ग्रामीण और क्षेत्रीय स्तर पर बनाई जाती थी, उनसभी पर धीरे-धीरे अंग्रेजों का नियंत्रण होने लगा। रोजगार के अवसर ग्राम स्तर पर कम होने लगे।


देश आजाद हुआ और देश की बागडोर थामने वाले लोग पता नहीं इस बात को जानबूझकर ढोते रहे या उन्हें इस बात का पता ही नहीं था।



जब समाज वर्ण व्यवस्था पर आधारित था तब बेरोजगारी नहीं थी या नगण्य थी।

 वर्ण व्यवस्था में आधारित समाज में रोजगार वंशानुगत था। युवक रोजगार की भीख माँगने किसी के पास नहीं जाता था। पिता अपना कारोबार अपने पुत्र को वसीहत की तरह सौंप देता था।


एक व्यवसायी के लड़के के पास व्यवसायी के रूप में अहर्निश सुरक्षित रोजगार है, लेकिन किसी कंपनी में सेवारत वह  अहर्निश  सुरक्षित नहीं है। 


इसी तरह एक ब्राह्मण का लड़का अपने पिता के व्यवसाय (पूजा पाठ यज्ञ आदि ) में अहर्निश सुरक्षित है ,लेकिन किसी बड़ी कंपनी में सेवारत वह डरा डरा महशूश करता है।  


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