मलेच्छों से सतर्कता: हिंदू धर्म और धार्मिक स्थलों की रक्षा का महत्व - mlecchon se satarkata hindu dharm aur dharmik sthalon ki raksha ka mahatwa

प्राचीन काल में हिंदू धर्म और धार्मिक स्थलों पर राक्षसों द्वारा लगातार हमले किए जाते थे। वे राक्षस मांस, हड्डी, और रक्त का उपयोग करके मंदिरों और पवित्र स्थानों को अपवित्र करते थे। ऐसे में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए उन राक्षसों का वध करना आवश्यक था। आज के आधुनिक समय में, भले ही वो राक्षस न रहे हों, परंतु उनके विचारधाराओं के आधुनिक स्वरूप में मलेच्छ मौजूद हैं, जो हिंदू धर्म और धार्मिक आस्थाओं को अपवित्र और कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।

मलेच्छों से सतर्कता


मलेच्छों से सावधान रहना आज भी उतना ही आवश्यक है जितना प्राचीन समय में राक्षसों से था। इन लोगों का उद्देश्य सदैव हिंदू धर्म पर चोट पहुँचाना रहा है। चाहे वो बौद्ध हों, जैन हों, कबीर हों, दयानंद हों, मुसलमान हों, ईसाई हों, सिख हों, या वामपंथी विचारधारा के लोग हों – इन सभी का इतिहास हिंदू धर्म को हानि पहुँचाने का रहा है। मलेच्छ कभी आपस में संघर्ष नहीं करते, बल्कि उनकी एकमात्र इच्छा हिंदू धार्मिक स्थलों और भावनाओं पर आघात करना होती है।

धार्मिक स्थलों और संस्कृति की रक्षा

यह आवश्यक है कि हम हिंदू धर्म के अनुयायी सतर्क रहें और मलेच्छों से दूरी बनाए रखें। ऐसे व्यक्तियों के प्रति प्रेम की बजाय घृणा का भाव रखना चाहिए, क्योंकि उनका उद्देश्य धर्म का अपमान और आस्थाओं को ठेस पहुँचाना है। मलेच्छों द्वारा अपवित्र किए गए स्थानों, जैसे बाला जी के प्रसाद की घटना, को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, और दोषियों को सख्त दंड मिलना चाहिए।


हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए। यह समय कल्कि अवतार का इंतजार करने का नहीं है, बल्कि अपने धर्म की रक्षा में तत्पर रहने का है। जब तक कल्कि अवतार मलेच्छों का वध नहीं करते, तब तक हमें अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा स्वयं करनी होगी। मलेच्छों से दूर रहें, उनसे सतर्क रहें, और सनातन धर्म की रक्षा में संलग्न रहें।

------लेखन्या पंडित रत्नेश उपाध्याय -----

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