समुद्र मंथन के 14 रत्न के नाम



14 रत्न कौन-कौन से हैं 


समुन्द्र मंथन से ये 14 रत्न निकले थे। इनमे वारुणी नामक मदिरा भी निकली थी जिसे असूरों ने झपट लिया।

1. हलाहल (विष) -
हलाहल विष के विष के प्रभाव से पूरी सृष्टि का सर्वनाश सन्निकट जान देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने अपने गले में धारण कर लिया।
2. घोड़ा (उच्चैःश्रवा) श्वेत अश्व  - इसे इंद्र ने अपनी सवारी बना लिया।

3. ऐरावत - गजेंद्र ऐरावत को भी इन्द्र ने अपनी सवारी बना लिया

4. कौस्तुभ मणि - कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। माना जाता है कि यह मणि देवताओं और असुरों द्वारा
किये गए 
समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह मूल्यवान वस्तुओं में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान थी और जहाँ भी यह मणि होती है, वहाँ किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती।


5. कामधेनु - कामधेनु गाय भी स्वर्ग लोक की शोभा बनी।

6. कल्पवृक्ष - कल्पवृक्ष स्वर्ग में देवलोक की शोभा बना रहा है। इस वृक्ष के निचे बैठ कर जो भी कल्पना करते हैं वो पूरा हो जाता  है।

7. देवी लक्ष्मी - देवी लक्ष्मी सागर से प्रकट हुई थी जिससे इनका नाम सिंधु सुता पड़ा। जब भगवान विष्णु मंदाराचल  पर्वत को धारण करने के लिए कच्छप अवतार धारण किये थे तो उनका सानिध्य पाने के लिए लक्ष्मी जी भी सागर में प्रवेश कर गयी थीं।

8. अप्सरा रंभा - समुद्र मंथन से एक अप्सरा भी निकली थी जिसे देवराज इंद्र ने अपने राज दरबार में राज नर्तकी के रूप में रख लिया था

9. पारिजात - पारिजात एक दुर्लभ पुष्पतरु है इसका भी प्रकाट्य समुद्र मंथन से हुआ था।  इस पारिजात पुष्प के लिए

10. वारुणी देवी - वारुणी नाम की मदिरा भी समुद्र से निकलने वाले रत्नो के साथ निकली। इसे पीकर असुर मदहोश हो गए और अमृत की चाह छोड़ मोहिनी रूपी सुंदरी को देखते रहे।

11. शंख - शंख को भी समुद्र मंथन से निकलने वाले अनमोल रत्नों में गिना जाता है। इसे भगवान विष्णु ने धारड़ कर लिया।

12. चंद्रमा - चन्द्रमा क्षीरसागर से निकलने वाले १२ वा  रत्न था ।
चन्द्रमा के स्तुति का पौराणिक मन्त्र इसका प्रमाण है।
दधि शंख तुषाराभं क्षीरो दार्णव सम्भवं नमामि शशिनं सोमं शंभु मुकुट भूषणं 

13. धन्वंतरि वैद्य - धन्वतरि वैद्य अमृत का कलश लिए समुद्र से निकले थे।

14. अमृत - अमृत ही वो अनमोल रत्न है जिसके लिए समद्र का मंथन हुआ था।

जब शुक्राचार्य ने शिव जी की तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त कर लिया तो देवताओं के पास अमृत पान के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसी कारड समुंद्र मंथन हुआ। अमृत के आने के बाद असुरो और देवता में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भगवान बिष्णु ने मोहिनी रूप धराड़ करके देवताओं को अमृत पीला दिया।  

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