दैहिक दैविक भैतिक तापा राम राज काहु नही व्यापा।
दुःख की मुख्यतः तीन श्रेणी है।
- दैहिक- शरीर का कष्ट रोग व्याधि आदि
- दैविक- किसी देवी देवता ऋषि आदि के अपमान जन्य कष्ट (जैसे राजा दिलीप ने कामधेनु गाय को देख कर नमस्कार नही किया जिससे उन्हें दोष लगा था।)
- भौतिक- भौतिक कष्ट में किसी भौतिक पदार्थ का अभाव भूमि वाहन आदि।
अब सोचने वाली बात यह है कि प्रभु राम कितने कुशल थे कि उनके राज्य में जनता इतनी संयमित थी।
बिना संयम के उपरोक्त त्रिबिध ताप से बचना मुश्किल है।
राम राज में मनुष्य क्या पशु पक्षी तक को न्याय मिलता था।
क्योंकि न्याय व्यवस्था पर विश्वास था।
आज की न्याय व्यवस्था पर तो जनता को विश्वास ही नहीं। किसी अपराध पर पीड़ित व्यक्ति न्यायाधीश के पास जाना नहीं चाहता।
राम राज्य में एक बार एक गिद्ध और कौआ आपस में लड़ने लगे। दोनों पेड़ पर बने कोटर पर अपना अपना अधिकार बता रहे थे। गिद्ध और कौवे को इसप्रकार लड़ता देखकर पक्षियों ने क्या की तुम दोनों प्रभु श्री राम के दरबार में अपनी समस्या लेकर जाओ।
गिद्ध और कौवा अपनी समस्या के साथ न्यायालय में उपस्थित हुए।
न्यायाधीश के सामने दोनों के बयान लिए गए।
*गिद्घ ने अपने बयान में कहा-*
महोदय इस कोटर में बचपन से रहते आया हूँ और मेरे बाप दादा इस कोटर में रहते आये हैं। मेरे पिताजी ने कहा था कि लगभग 100 साल से हमारा इस कोटर पर अधिकार है।
न्यायाधीश ने पूछा क्या तुम अपना कोई गवाह / साक्ष्य ला सकते हो।
इसपर गिद्ध ने कहा मैं अधम पक्षी हूँ मुझसे लोग मिलना काम हीं पसंद करते हैं। मेरी कोई सामाजिक पृष्ठभूमि नहीं है। लेकिन, मैं अपनी बात सपथ पर्वक कह रहा हूं। मेरे बात पर विश्वास किया जाय।
*अब कौवे के बयान की बारी आई*
कौए ने अपने बयान में कहा। इस कोटर में मैं सृष्टि की आदि से रहते आ रहा हूँ।
अब न्यायाधीश को चिंता हुई कही ये काकभुशुण्डि तो नहीं और ये काकभुशुण्डि जी का कोटर हो।
न्यायाधीश ने कौवे से पूछा क्या आपके पास कोई साक्ष्य है?
कौए के पीठलगु कौवों ने एक स्वर में बोलना शुरू किया मैन इनको ऐसे ही देखा है। मेरे दादा ने इनको ऐसे ही देखा।
न्यायाधीश ने सुनवाई आगे टाल दी और बात प्रभु राम तक पहुँची
प्रभु ने आदेश दिया कि पेड़ के उमर की जाँच की जाए।
वैज्ञानिकों ने पेड़ के उमर की जांच में पाया कि पेड़ कोई 100 150 साल पुराना है
इसप्रकार पेड़ के कोटर पर गिद्ध का अधिकार सिद्ध हुआ और कौवे को सजा मिली।
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