रोटी, कपड़ा और मकान एक कहानी - roti kapda aur makan ek kahani


संघर्ष की शुरुआत

गाँव में सूरज अपनी किरणों से खेतों को सोने जैसा चमका रहा था। उसी गाँव में, राजू नाम का एक गरीब किसान अपने परिवार के साथ रहता था। राजू की पत्नी सीता और उनके दो छोटे बच्चे, मोहन और गीता, उसके जीवन की धुरी थे। उनकी जिंदगी का संघर्ष रोज की रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरतों को पूरा करने में ही बिता करता था।

राजू दिन भर खेतों में मेहनत करता, लेकिन जब फसल खराब हो जाती तो उनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता। सीता, जो घर के काम के साथ-साथ सिलाई का काम भी करती थी, बच्चों की पढ़ाई और घर खर्च में मदद करने की कोशिश करती। परंतु, आर्थिक तंगी के कारण बच्चों की पढ़ाई भी अधूरी रह जाती थी।

कठिनाइयों का पहाड़

एक दिन, गाँव में भारी बारिश हुई और राजू की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। इस आपदा ने उनके जीवन को और कठिन बना दिया। रोटी के बिना दिन गुजारना पड़ रहा था और बच्चों की स्कूल की फीस भी जमा नहीं हो पा रही थी। मकान की मरम्मत करवाने की तो बात ही छोड़ दीजिए।

सीता की सिलाई मशीन भी पुरानी हो चुकी थी, जिससे काम में दिक्कतें आने लगी थीं। कपड़े फट जाते थे, लेकिन नए कपड़े खरीदने के पैसे नहीं थे। ऐसे में, राजू और सीता ने मिलकर एक निर्णय लिया कि वे शहर जाकर काम करेंगे और वहाँ से पैसे कमाकर वापस गाँव लौटेंगे।

शहर की ओर

राजू और सीता अपने बच्चों को गाँव में दादी के पास छोड़कर शहर की ओर रवाना हो गए। शहर में उन्हें काम तो मिला, लेकिन मेहनताना बहुत कम था। राजू ने एक निर्माण स्थल पर मजदूरी का काम करना शुरू किया, जबकि सीता ने एक घर में घरेलू काम करना शुरू किया। दिन भर की थकान और मेहनत के बाद भी वे अपने बच्चों और घर की यादों में खोए रहते थे।

शहर की जिंदगी में संघर्ष और भी कठिन था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे उन्होंने कुछ पैसे जमा करने शुरू किए और बच्चों के लिए किताबें और नए कपड़े खरीदने के बारे में सोचने लगे।

मेहनत का फल

कुछ महीनों बाद, राजू और सीता ने मिलकर पर्याप्त पैसे जमा कर लिए थे। उन्होंने गाँव वापस लौटने का फैसला किया। गाँव लौटते ही सबसे पहले उन्होंने बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था की। सीता ने एक नई सिलाई मशीन खरीदी और अपना सिलाई का काम फिर से शुरू किया।

राजू ने अपने खेतों की मरम्मत की और नई फसल बोई। इस बार, मौसम ने भी उनका साथ दिया और फसल अच्छी हुई। मेहनत और संघर्ष के बाद, उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा किया और अपने परिवार को खुशहाल जीवन देने में सफल हुए।

सुखमय जीवन

राजू और सीता ने अपने संघर्षों से सीखा कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए धैर्य और मेहनत जरूरी है। उनके बच्चों ने भी उनके संघर्षों से प्रेरणा लेकर पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया और एक दिन डॉक्टर और इंजीनियर बनकर अपने माता-पिता का नाम रोशन किया।

रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरतें पूरी करने के बाद, राजू और सीता ने अपने जीवन को नए सिरे से जीना शुरू किया। अब उनके घर में खुशियों की बौछार थी और वे गर्व से कहते थे कि "मेहनत का फल मीठा होता है।"

समापन 

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि कठिन परिश्रम, धैर्य और संघर्ष से जीवन की सभी मुश्किलों का समाधान निकाला जा सकता है। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत जरूरतें भी हमें हमारे प्रयासों और संघर्षों से ही मिलती हैं।

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