क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् ।
क्षणे नष्टे कुतो विद्या कणे नष्टे कुतो धनम् ॥
अर्थात
मनुष्य को छण छण विद्या अध्ययन के लिए प्रयास करना चाहिए। इसी तरह कण कण धन संग्रह के लिए भी प्रयास करना चाहिए।
जो व्यक्ति विद्या अध्ययन के किमती छण को नष्ट कर देता है वो विद्यावान होने के अवसर को खोते जाता है।
छण छण समय उपयोग =>विद्या अध्ययन करना => विद्यावान बनता है
कण कण धन संग्रह से तात्पर्य है कम मूल्य वाली वस्तु का भी तिरस्कार न कर उसका संग्रह कर धनवान बनाना।
कण कण जोड़कर=>धन इकठ्ठा करना =>धन संचय => यही बुद्धिमानी है
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