सनातन संस्कृति में आहार का मन और शरीर पर गहरा प्रभाव माना गया है। यहाँ पर हम उन आहारों की चर्चा करेंगे जो मनुष्य के अंदर अहंकार और दूसरों के प्रति दुर्भावना पैदा कर सकते हैं।
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।
अहंकार और दुर्भावना उत्पन्न करने वाले आहार
मांसाहार:
मांसाहार को सनातन धर्म में तामसिक आहार माना गया है। तामसिक आहार मनुष्य के मन में क्रोध, अहंकार और हिंसा की भावना को बढ़ावा देता है1. मांसाहार से शरीर में भारीपन और आलस्य भी आता है, जो मानसिक शांति को भंग कर सकता है।
अत्यधिक मसालेदार और तैलीय भोजन:
अत्यधिक मसालेदार और तैलीय भोजन को भी तामसिक आहार की श्रेणी में रखा गया है। यह आहार मन में उत्तेजना और अशांति पैदा करता है, जिससे व्यक्ति के विचार और व्यवहार में नकारात्मकता आ सकती है1.
बासी और खराब भोजन:
बासी और खराब भोजन का सेवन भी तामसिक गुणों को बढ़ाता है। ऐसा भोजन शरीर और मन दोनों के लिए हानिकारक होता है और इससे व्यक्ति के अंदर नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं1.
अत्यधिक मीठा और जंक फूड:
अत्यधिक मीठा और जंक फूड भी तामसिक आहार में आता है। यह आहार शरीर में विषाक्त पदार्थों को बढ़ाता है और मन में असंतोष और चिड़चिड़ापन पैदा कर सकता है1.
सात्त्विक आहार का महत्व
सनातन संस्कृति में सात्त्विक आहार को सर्वोत्तम माना गया है। सात्त्विक आहार में ताजे फल, सब्जियाँ, अनाज, दालें, और दूध उत्पाद शामिल होते हैं। यह आहार मन और शरीर दोनों के लिए लाभकारी होता है और इससे व्यक्ति के अंदर शांति, संतोष और सकारात्मकता का विकास होता है1.
निष्कर्ष
सनातन संस्कृति में आहार का मन और शरीर पर गहरा प्रभाव माना गया है। तामसिक आहार से बचकर सात्त्विक आहार का सेवन करने से व्यक्ति के अंदर अहंकार और दुर्भावना की भावना को कम किया जा सकता है। सही आहार का चयन करके हम अपने जीवन को अधिक स्वस्थ और संतुलित बना सकते हैं।
सन्दर्भ
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