भारत का संविधान और धर्म का टकराव – क्या झूठ को मिली आज़ादी अधर्म नहीं है?

परिचय

भारत की संस्कृति और सभ्यता का आधार धर्म है। धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन के आदर्श नियम है। शास्त्रों में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं – धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध। इनमें से सत्य को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है।
धर्म कहता है – "सत्य ही ईश्वर है और असत्य पाप है।"

लेकिन जब हम भारत के संविधान की ओर देखते हैं तो एक बड़ा विरोधाभास सामने आता है। धर्म जहाँ सत्य को जीवन का सर्वोच्च मूल्य मानता है, वहीं संविधान झूठ बोलने को अपराध नहीं मानता। यही सबसे बड़ी विडंबना है।




धर्म और सत्य

धर्म शाश्वत है, कालातीत है।
धर्म कहता है –

  • सत्य बोलो, चाहे कुछ भी हो।

  • असत्य आत्मा को कलुषित करता है।

  • सत्य से ही समाज में विश्वास और न्याय स्थापित होता है।

सत्य वह शक्ति है जो व्यक्ति को महान बनाती है। इसी सत्य के बल पर ऋषि, मुनि और महापुरुषों ने मानवता का मार्गदर्शन किया।


संविधान और झूठ

भारत का संविधान कहता है कि हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी बात, अपने विचार और अपने मत स्वतंत्र रूप से रख सकता है। लेकिन यह स्वतंत्रता सीमित अपराधों तक ही नियंत्रित है।
👉 उदाहरण के लिए:

  • अदालत में झूठी गवाही देना अपराध है।

  • किसी को धोखा देना, ठगना या धोखाधड़ी करना अपराध है।

  • मानहानि या झूठा प्रचार करना भी अपराध है।

लेकिन इन विशेष परिस्थितियों से बाहर, झूठ बोलना कोई अपराध नहीं है।
यानी कि – संविधान कहता है, जब तक झूठ दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता, तब तक वह स्वतंत्रता है।


धर्म बनाम संविधान

  • धर्म कहता है – "झूठ पाप है।"

  • संविधान कहता है – "झूठ अपराध नहीं है।"

यही सबसे बड़ा टकराव है।
संविधान लोगों को सच बोलने के लिए प्रेरित नहीं करता, बल्कि यह कहकर अधर्म को वैधानिक मान्यता देता है कि "झूठ बोलना अपराध नहीं है।"
क्या यह नागरिकों को अधर्मी बनने की ओर धकेलना नहीं है?


क्या संविधान भारत की आत्मा से कटा हुआ है?

भारत का संविधान भारतीय परंपरा और आध्यात्मिकता से प्रेरित नहीं है। इसे बनाने वालों ने पश्चिमी देशों के संविधानों से टुकड़े उठाकर जोड़ दिए। इस "कॉपी-पेस्ट" दस्तावेज़ में भारत की आत्मा – धर्म और सत्य – की अनदेखी की गई।
परिणामस्वरूप:

  • आज झूठ बोलना सामाजिक रूप से सामान्य हो चुका है।

  • लोग असत्य को गलत नहीं मानते क्योंकि कानून उसे अपराध नहीं कहता।

  • समाज में विश्वास और नैतिकता का स्तर लगातार गिर रहा है।


निष्कर्ष

संविधान और धर्म के इस टकराव ने समाज को एक खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया है।
यदि कोई व्यवस्था सत्य को गौण कर दे और झूठ को सहन कर ले, तो वह समाज को महान बनाने की क्षमता खो देती है।

👉 भारत का संविधान अधूरा है क्योंकि इसमें धर्म के मूल तत्व – सत्य – की उपेक्षा की गई है।
👉 यह नागरिकों को अधर्म की राह पर ले जाता है क्योंकि यह झूठ को स्वतंत्रता का दर्जा देता है।


🔥 नारे – सत्य बनाम संविधान 🔥

  • "जहाँ झूठ को स्वतंत्रता मिले, वहाँ धर्म मर जाता है!"

  • "धर्म कहता है सत्य – संविधान कहता है झूठ!"

  • "सत्य की जय हो – असत्य का नाश हो!"

  • "संविधान अधूरा है, जब तक सत्य सर्वोच्च नहीं होता!"


👉 अब समय आ गया है कि हम इस कटु सत्य को निडर होकर स्वीकार करें और कहें –
"सत्य ही धर्म है, और सत्य ही भारत की आत्मा है!"

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