प्रस्तावना
भारतीय संस्कृति में धर्म और राजनीति कभी अलग नहीं रहे। जहाँ धर्म हमें जीवन का सत्य बताता है, वहीं राजनीति उस सत्य को समाज में लागू करने का माध्यम बनती है। इसी संदर्भ में जब हम वर्तमान भारतीय राजनीति को देखते हैं तो सहज ही दो महान व्यक्तित्व स्मरण में आते हैं – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।
गीता का श्लोक कहता है:
“तपस्विभ्योऽधिको योगी” – योगी तपस्वियों से भी श्रेष्ठ होता है।
इस श्लोक के प्रकाश में जब हम मोदी जी और योगी जी का मूल्यांकन करते हैं तो राजनीति के साथ-साथ अध्यात्म की झलक भी दिखाई देती है।
नरेंद्र मोदी – एक तपस्वी
नरेंद्र मोदी जी का जीवन एक तपस्या का उदाहरण है।
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साधारण परिवार से निकले, जीवनभर व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं का त्याग किया।
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कठिन परिस्थितियों में भी राष्ट्रसेवा का मार्ग चुना।
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आज पूरी दुनिया उनकी कार्यशैली और दूरदृष्टि को देख रही है।
एक तपस्वी की पहचान यही है कि वह अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए जीता है। मोदी जी का जीवन इस परिभाषा पर खरा उतरता है।
योगी आदित्यनाथ – एक योगी
गीता कहती है:
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योगी तपस्वी से भी श्रेष्ठ है।
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योगी ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ है।
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योगी कर्मियों से भी श्रेष्ठ है।
योगी आदित्यनाथ जी इस आदर्श को मूर्त रूप देते हैं।
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गोरक्षपीठ के महंत होकर भी उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।
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तप, संयम और योग साधना को त्यागे बिना वे प्रशासन चला रहे हैं।
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उनका व्यक्तित्व राजनीति और अध्यात्म दोनों का अद्भुत संगम है।
यही कारण है कि लोग मानते हैं – जब योगी का पूर्ण प्रभाव सामने आएगा तो राजनीति की दिशा ही बदल जाएगी।
विपक्ष का भविष्य – व्यंग्य और यथार्थ
अब एक सवाल मन में उठता है – जब गीता कहती है “तपस्विभ्योऽधिको योगी”, और यदि योगी जी राजनीति के केंद्र में आते हैं, तब क्या होगा?
शायद वही होगा, जिसकी कल्पना अभी असंभव लगती है –
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राहुल गांधी,
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अखिलेश यादव,
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तेजस्वी यादव…
सभी के लिए यही रास्ता बचेगा कि वे या तो हाशिये पर जाएँ, या फिर उसी धारा से जुड़ें जिसे आज वे विरोध कर रहे हैं।
यह व्यंग्य जैसा लगता है, लेकिन राजनीति में असंभव भी संभव होता है।
गीता का संदेश और राजनीति
गीता ने स्पष्ट कहा है –
👉 तपस्वी का महत्व है, लेकिन योगी सबसे श्रेष्ठ है।
👉 योगी वह है जो तप, ज्ञान और कर्म – तीनों को साधकर निष्काम भाव से कार्य करता है।
👉 योगी का प्रभाव इतना गहरा होता है कि विरोध भी धीरे-धीरे उसकी ओर खिंचने लगता है।
यदि इस दृष्टि से देखें तो –
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मोदी जी तपस्वी हैं, जिनका प्रभाव पूरी दुनिया देख रही है।
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योगी जी योगी हैं, जिनका समय आना बाकी है।
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और जब वह समय आएगा, तब राजनीति की परिभाषा ही बदल सकती है।
निष्कर्ष
भारत की राजनीति में तप और योग – दोनों का संगम देखने को मिल रहा है।
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मोदी जी की तपस्या ने भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया है।
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योगी जी का संयम और योग साधना आने वाले समय में राजनीति की धारा को और प्रखर बना सकती है।
गीता का श्लोक हमें यही सिखाता है:
“तपस्विभ्योऽधिको योगी” – योगी ही वास्तव में सबसे श्रेष्ठ है।
और जब योगी का प्रभाव बढ़ेगा, तो विरोधी भी उसी शक्ति में विलीन होने को विवश हो जाएँगे।
🔥 नारे (ब्लॉग के अंत में ज़रूर जोड़ें)
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"तपस्वी दिखाता है मार्ग – योगी करता है सिद्धि!"
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"जहाँ योगी है, वहाँ विजय है!"
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"तप से दुनिया बदली, योग से राजनीति बदलेगी!"
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"तपस्वी मोदी – योगी आदित्यनाथ, भारत का उज्ज्वल भविष्य!"
👉 यह लेख केवल विचारों की अभिव्यक्ति है। इसमें धर्म, गीता और राजनीति को जोड़कर एक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।
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