भारतीय संस्कृति, गालियाँ और राजनीति: एक विवेचनात्मक दृष्टि

 भारत अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता और भाषा की समृद्धि के लिए विश्व में अद्वितीय रहा है। यहाँ की भाषा परंपरा में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और क्षेत्रीय बोलियों ने मानव भावनाओं को अभिव्यक्त करने के असंख्य साधन दिए। इन भाषाओं में क्रोध, विरोध, व्यंग्य और तिक्तता व्यक्त करने के भी अनेक शब्द रहे, लेकिन ‘माँ-बहन’ से जुड़ी गालियाँ भारतीय मूल की परंपरा का हिस्सा कभी नहीं थीं



भारत में प्राचीन अपशब्द और दुर्वचन

  • प्राचीन संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों में शत्रुता, अपमान और तिरस्कार व्यक्त करने के लिए शब्दों का प्रयोग मिलता है। जैसे – दुर्जन, मूर्ख, अधम, पामर, दुष्ट आदि।

  • महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में भी कठोर शब्दों का प्रयोग हुआ है, परंतु वे चरित्र या कर्म पर आधारित होते थे, परिवार की स्त्रियों पर नहीं

  • यह दर्शाता है कि भारतीय समाज ‘स्त्री को पूज्य’ मानकर चलता था और उसे अपमानित करना अधर्म समझा जाता था।

माँ-बहन की गालियों का प्रवेश

इतिहासकारों और भाषाविदों का मानना है कि माँ-बहन से जुड़ी गालियाँ भारत में बाहरी आक्रमणों के बाद आईं

  • मध्यकाल में मुगल और अन्य विदेशी शासकों के आने के साथ भारत में नई बोलियों और जीवन-शैली का सम्मिश्रण हुआ।

  • सैनिक संस्कृति और राजदरबार की भाषा में आई कठोरता ने ऐसे अपशब्दों को जन्म दिया जिनमें स्त्रियों को अपमानित कर शत्रु का मनोबल तोड़ने की कोशिश की जाती थी।

  • धीरे-धीरे ये गालियाँ जन-जीवन में भी घुलने लगीं और आज दुर्भाग्य से सामान्य बोलचाल का हिस्सा बन गई हैं।

राजनीति और गाली-गलौज की गिरावट

आज की राजनीति में शालीनता और संवाद की परंपरा लगातार कमजोर होती जा रही है। लोकतंत्र में बहस-विवाद स्वाभाविक है, लेकिन जब राजनीतिक विरोध व्यक्तिगत अपमान तक पहुँच जाए, तो यह केवल व्यक्ति ही नहीं, बल्कि संस्कृति पर भी प्रहार है।

हाल के वर्षों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ हीराबेन को गालियाँ देने की घटनाएँ बार-बार सामने आई हैं।

  • विरोधियों द्वारा की गई इस तरह की टिप्पणी न केवल असंस्कारी है, बल्कि भारतीय परंपरा के विरुद्ध भी है।

  • माँ हर संस्कृति में सबसे पवित्र और पूजनीय मानी जाती है। किसी भी नेता के विचारों और नीतियों की आलोचना करना लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन उनकी माँ पर अपशब्द कहना भारतीयता के विरुद्ध है

भारतीय समाज की जिम्मेदारी

आज आवश्यकता है कि हम भाषा के इस असंस्कारी प्रवाह को रोकें

  • बच्चों और युवाओं को यह शिक्षा मिले कि गाली-गलौज बहादुरी नहीं, बल्कि कमजोरी का प्रतीक है।

  • राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन संवाद मर्यादित होना चाहिए।

  • समाज को समझना होगा कि जो लोग माँ-बहन की गालियाँ देते हैं, वे भारतीय संस्कृति का नहीं, बल्कि विदेशी अवशेषों का अनुसरण कर रहे हैं।

माँ बहन की गाली मुग़ल संस्कृति से जुड़ा है 
उदहारण के लिए नरेंद्र मोदी की माँ को गाली देने वाला युवक भी मुस्लिम निकला 

निष्कर्ष

भारत ने हमेशा से संवाद, शास्त्रार्थ और वाद-विवाद की सभ्य परंपरा को पोषित किया है। गाली-गलौज इस परंपरा का हिस्सा नहीं, बल्कि बाहरी संस्कृतियों से आई विकृति है। आज जब लोकतंत्र और राजनीति दोनों ही नई चुनौतियों से गुजर रहे हैं, तो हमें अपनी संस्कृति की ओर लौटकर यह सुनिश्चित करना होगा कि विरोध विचारों पर हो, व्यक्ति की माँ-बहन पर नहीं।

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