आज की आधुनिक सभ्यता ऊर्जा पर आधारित है, लेकिन यह प्रश्न बहुत कम पूछा जाता है कि हम जो ऊर्जा उपयोग कर रहे हैं, वह नैतिक, प्राकृतिक और जीवन-सम्मत है या नहीं?
यदि इस प्रश्न को शाकाहार के दृष्टिकोण से देखें, तो कई गहरे और अनदेखे पहलू सामने आते हैं।
जीवाश्म ईंधन: क्या यह शाकाहारी सोच के अनुकूल है?
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels)—जैसे पेट्रोल, डीज़ल, गैस—करोड़ों वर्षों तक जीवों (वनस्पति व जंतु दोनों) के दीर्घकालिक decomposition से बने हैं।
यानी ये ऊर्जा स्रोत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मृत जीवों के अवशेषों पर आधारित हैं।
यदि शाकाहार का मूल सिद्धांत है—
जीवों के शोषण और हिंसा से यथासंभव दूर रहना
तो यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध उपयोग शाकाहारी दर्शन के अनुरूप है?
पूर्ण बहिष्कार कठिन, पर ऑप्टिमाइजेशन संभव
यह व्यावहारिक सत्य है कि आज की व्यवस्था में जीवाश्म ईंधन का पूर्ण बहिष्कार तत्काल संभव नहीं है।
लेकिन शाकाहारी जीवन-दृष्टि “सब या कुछ नहीं” की नहीं, बल्कि न्यूनतम हिंसा (Minimum Harm) की होती है।
यहीं से आता है ऑप्टिमाइजेशन का विचार—
जहाँ संभव हो, वहाँ वैकल्पिक, स्वच्छ और अहिंसक ऊर्जा को अपनाना।
शाकाहारी-अनुकूल ऊर्जा विकल्प
कुछ ऊर्जा स्रोत ऐसे हैं जो शाकाहारी दर्शन के अधिक निकट हैं:
1. सौर ऊर्जा (Solar Energy)
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सूर्य किसी जीव का नाश करके ऊर्जा नहीं देता
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यह शुद्ध, अक्षय और सार्वभौमिक है
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भारत जैसे देश के लिए यह सबसे बड़ा नैतिक ऊर्जा स्रोत हो सकता है
2. पवन ऊर्जा (Wind Energy)
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प्रकृति की गति से प्राप्त
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न जीवाश्म, न हिंसा
3. ताप विद्युत (कुछ सीमाओं के साथ)
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यदि कोयले की जगह वैकल्पिक या अपशिष्ट-आधारित ईंधन प्रयोग हों
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तो इसका प्रभाव घटाया जा सकता है
4. कोयला और चारकोल
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कोयला प्राकृतिक रूप से जंतु-वनस्पति दोनों से बना है
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पर चारकोल मुख्यतः पौधे आधारित होता है
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नियंत्रित व सीमित उपयोग में इसे अपेक्षाकृत कम हिंसक माना जा सकता है
यदि शाकाहारी समाज ऊर्जा में भी जागरूक हो जाए…
कल्पना कीजिए—
यदि सिर्फ शाकाहारी लोग यह ठान लें कि:
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वे सोलर पैनल अपनाएँगे
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जीवाश्म ईंधन का न्यूनतम उपयोग करेंगे
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और ऊर्जा-उपभोग को भी अपने नैतिक जीवन का हिस्सा बनाएँगे
तो परिणाम केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक भी होंगे।
वह दिन दूर नहीं जब—
खाड़ी देशों के शेख,
जो आज हमें तेल बेचते हैं,
कल हमसे सौर ऊर्जा और तकनीक खरीदते दिखाई देंगे।
निष्कर्ष
शाकाहार केवल भोजन तक सीमित नहीं है—
यह जीवन जीने की एक समग्र दृष्टि है।
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हम क्या खाते हैं
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हम किस ऊर्जा से जीते हैं
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और हम पृथ्वी से क्या लेते हैं
इन सब पर यदि शाकाहारी दृष्टिकोण से विचार किया जाए,
तो ऊर्जा का शुद्धिकरण भी एक आध्यात्मिक और नैतिक आंदोलन बन सकता है।
अब प्रश्न यह नहीं है कि बदलाव संभव है या नहीं—
प्रश्न यह है कि क्या हम शुरुआत करने को तैयार हैं?

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