आगतं तु भयं वीक्ष्य नरः कुर्याद् यथोचितम् ॥
उपरोक्त श्लोक सुभाषितानि से लिया गया है
अर्थात भय से तबतक नहीं डरना चाहिए जबतक भय पास में न आ चूका हो। सन्निकट संकट को समझकर उसके प्रतिकार का यथोचित उपाय करना चाहिए
एकबार की बात है गुरुकुल में गुरूजी बच्चों को यही पाठ पढ़ा रहे थे।
बच्चे गुरु जी के व्याख्या को कुछ कुछ समझ तो गए लेकिन संशय अभी भी शेष था।
अब गुरूजी ने उदहारण के माध्यम से समझाना शुरू किया।
गुरूजी बोले =>
बच्चों उपरोक्त को समझने के लिए तीन जानवर(बकरी,गाय, भैंस ) के बच्चे लेते हैं और उनको एक ही मार्ग पर थोड़ी थोड़ी दूर पर खूँटे से बाँध देते हैं।
अब इसी मार्ग से हाथी गुजरना है
१)बकरी का बच्चा जब दूर से ही हाथी को अपनी ओर आता हुआ देखेगा तो परेशान हो जाएगा और खूंटे से घूम घूम कर गले में अपने हीं रस्सी का फंदा लगा लेगा।
२) भैंस का बच्चा हाथी को अपने ओर आते हुए देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देगा अगर हाथी उसके ऊपर से पैर रखकर भी चला जाय तो भी वह शिथिल पड़ा रहेगा।
३)अब गाय के बछड़े की चतुराई देखो। वह हाथी को दूर से आता हुआ देखकर परेशान नहीं होगा बल्कि सतर्क रहेगा। और भावी सन्निकट संकट के समय पुरे जोर से रस्सी के बंधन को तोड़कर मुक्त हो जायेगा
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