एक समय की बात है, जब एक राजा अपने राज्य में सुंदर सरोवर के मालिक थे। उनके सरोवर में बहुत सुंदर कमल के पुष्प खिले हुए थे और सरोवर के किनारे फलदार वृक्षों ने अपने फलों से सजीव किया था। इस जलाशय में बहुत सी रंगीन मछलियाँ खेलती थीं और वहां का जलविहार सभी को मोहित कर देता था। राजा ने अपने आदेश के अनुसार सभी को सख्ती से चेतावनी दी कि सरोवर से कोई मछली पकड़ना मना है, ताकि सरोवर की सुंदरता और प्राकृतिक जीवन का संरक्षण हो सके। एक सुचना पट्ट पर चेतावनी लिखी गई थी जो सभी को यह बताती थी कि यह आदेश सख्ती से पालन किया जाएगा।
इसी समय, राजा के राज्य में एक चोर था, जो साधु के छद्म वेष में चोरी करता था। वह साधु के परिधानों को अपने साथ रखता था ताकि अगर कभी उसे पकड़ा जाता तो वह साधु बनकर बच सके। एक दिन, चोर को कोई चोरी में सफलता नहीं मिली, और उसने निराश होकर सरोवर के किनारे बैठ लिया। उसकी नजर सुचना पट्ट पर पड़ी और उसने देखा कि सरोवर से मछलियाँ पकड़ने का आदेश है। डर के बावजूद, चोर ने तालाब में जाकर मछलियाँ पकड़ने का प्रयास किया।
राजा चोर के निकट आ रहे थे लेकिन चोर मन ही मन डर रहा था कि पता नहीं राजा क्या दंड दे दे। फिर भी वह साहस करके ध्यान में बैठा रहा। राजा साधु के पास आया और उसे प्रणाम किया। साधु के तरफ से प्रति उत्तर न सुनकर राजा को लगा की कोई बहुत पहुंचे हुए महात्मा है और दीर्घ काल से ध्यान में हैं। इन्हें अभी ध्यान से जगाना ठीक नहीं कभी फिर इनसे मिलेंगे। राजा साधु के सामने बहुत सारे हीरे जवाहरात उपहार स्वरुप रख कर चला गया।
राजा के जाने के बाद, चोर ने आँखें खोलीं और उपहारों को देखकर वह हैरान रह गया। उसने समझा कि साधु बनने के लिए उसे इतने शानदार उपहार मिल रहे हैं, तो अगर वह सच्चे साधु बन जाए तो कितना अच्छा होगा। इस सोच के कारण, उसने चोरी करना छोड़ दिया और सत्कर्म का मार्ग अपनाया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सत्य और नेकी का मार्ग चुनना हमें जीवन में सफलता और सुख-शांति की दिशा में मदद कर सकता है। चोर ने अपनी गलतियों का समर्थन करने के बजाय सही राह चुनी और सत्कर्म करके उच्च स्थान पर पहुंचा।
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