भारत का विभाजन 1947 में हुआ — यह आधुनिक इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक था। लाखों लोग विस्थापित हुए और हज़ारों ने अपनी जान गंवाई। प्रश्न यह है कि विभाजन का असली जिम्मेदार कौन था? कांग्रेस, जिन्ना या दोनों का सम्मिलित प्रयास?
जिन्ना और मुस्लिम लीग की भूमिका
मोहम्मद अली जिन्ना ने 1940 में लाहौर प्रस्ताव के माध्यम से दो-राष्ट्र सिद्धांत रखा। उनका तर्क था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और एक साथ नहीं रह सकते।
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मुस्लिम लीग ने 1946 में डायरेक्ट एक्शन डे का आह्वान किया, जिसके बाद बड़े पैमाने पर दंगे हुए।
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जिन्ना की जिद और कट्टर राजनीति ने विभाजन की नींव मजबूत की।
कांग्रेस की भूमिका
कांग्रेस प्रारंभ में विभाजन के खिलाफ थी। गाँधी, नेहरू और पटेल जैसे नेता एकता चाहते थे।
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लेकिन लगातार दंगों, खून-खराबे और प्रशासनिक अराजकता के कारण कांग्रेस ने अंततः विभाजन स्वीकार कर लिया।
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उनका मानना था कि अगर विभाजन न स्वीकारा गया तो देश और भी लंबे समय तक हिंसा और अशांति में डूबा रहेगा।
ब्रिटिश नीति और माउंटबेटन की भूमिका
ब्रिटिश साम्राज्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कमजोर हो चुका था और जल्दी भारत छोड़ना चाहता था।
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फूट डालो और राज करो की नीति लंबे समय से चल रही थी।
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वाइसराय माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तिथि को आगे बढ़ाकर अगस्त 1947 कर दिया। इससे विभाजन की प्रक्रिया जल्दबाज़ी में पूरी हुई और हिंसा और भी बढ़ गई।
आरएसएस और हिन्दू महासभा का दृष्टिकोण
आरएसएस ने प्रत्यक्ष राजनीतिक भूमिका नहीं निभाई, लेकिन हिन्दू महासभा के कुछ नेताओं ने मुस्लिम लीग के दो-राष्ट्र सिद्धांत की अलग तरह से पुष्टि की थी। हालाँकि, मुख्य राजनीतिक निर्णय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और ब्रिटिश सत्ता के बीच ही हुए।
NCERT पाठ्य-पुस्तकों में विभाजन सम्बन्धी संशोधन
हाल ही में NCERT ने विभाजन से जुड़े अध्यायों और मॉड्यूल्स में बदलाव किए हैं।
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अब यह स्पष्ट किया गया है कि विभाजन केवल जिन्ना का निर्णय नहीं था, बल्कि यह तीन पक्षों — जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन — की सम्मिलित भूमिका का परिणाम था।
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कई जगह यह भी जोड़ा गया है कि कोई आज के समय में अतीत की घटनाओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, यानी विभाजन को केवल किसी एक पक्ष की गलती मानना उचित नहीं है।
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कुछ अध्यायों में मुग़लकाल और अन्य ऐतिहासिक विवरणों को भी घटाया या बदला गया है, ताकि पाठ्यक्रम अधिक संक्षिप्त और केंद्रित हो सके।
निष्कर्ष
भारत का विभाजन किसी एक नेता या संगठन की जिम्मेदारी नहीं था।
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जिन्ना: विभाजन की माँग और दो-राष्ट्र सिद्धांत का मुख्य प्रवर्तक।
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कांग्रेस: परिस्थितियों के दबाव में विभाजन स्वीकार करने वाला दल।
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ब्रिटिश सत्ता: जल्दबाज़ी में सत्ता हस्तांतरण कर हिंसा को और बढ़ाने वाली ताकत।
इसलिए यह कहना अधिक सही होगा कि विभाजन जिन्ना, कांग्रेस और ब्रिटिश सत्ता — तीनों की सम्मिलित भूमिका और निर्णयों का परिणाम था।
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