महात्मा गाँधी को आज़ादी के आंदोलन का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। वे सत्य, अहिंसा और नैतिकता के समर्थक थे। लेकिन इतिहास के पन्नों में एक सच यह भी दर्ज है कि उन्होंने अपने संघर्ष के दौरान अँग्रेज़ों को कई बार पत्र लिखकर माफ़ी माँगी थी।
गाँधी की रणनीति – अहिंसा और आत्मसमर्पण
गाँधी जी का मानना था कि हिंसा से कभी स्थायी आज़ादी नहीं मिल सकती। इसी कारण वे सत्याग्रह और अहिंसा को सबसे बड़ा अस्त्र मानते थे। जब-जब वे या उनके अनुयायी अँग्रेज़ी कानून तोड़ते, तब वे अदालत में स्वयं को दोषी मानकर खड़े हो जाते और दंड स्वीकार करने की बात करते। कई बार उन्होंने इसे लिखित रूप में माफ़ीनामों के रूप में भी प्रस्तुत किया।
1. दक्षिण अफ़्रीका आंदोलन (1908–1914)
गाँधी जी दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद और भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे। इस दौरान वे कई बार जेल गए।
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1909 में उन्होंने अँग्रेज़ सरकार को लिखित माफ़ीनामा दिया और कहा कि वे आगे क़ानून का पालन करेंगे।
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यह उनकी रणनीति का हिस्सा था ताकि आंदोलनकारियों पर कठोर दमन न हो और उन्हें राहत मिले।
2. चम्पारण सत्याग्रह (1917)
चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों के हक़ की लड़ाई लड़ते समय गाँधी जी पर अदालत में मुक़दमा चला।
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उन्होंने अदालत में साफ़ कहा – “हाँ, मैंने कानून तोड़ा है, पर यह जनहित में किया गया है। यदि मुझे दंड दिया जाए तो मैं स्वीकार करूँगा।”
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यह भी एक तरह का आत्मसमर्पण और अप्रत्यक्ष माफ़ीनामा था।
3. असहयोग आंदोलन और 1922 का मुक़दमा
जब असहयोग आंदोलन हिंसा की ओर मुड़ गया (चौरी-चौरा कांड), तब गाँधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया।
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उन्होंने यंग इंडिया पत्रिका में लिखा कि यदि उनके कार्य से कानून टूटा है तो वे इसके लिए दोषी हैं।
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अदालत में भी उन्होंने स्वयं को अपराधी मानकर कहा कि वे दंड स्वीकार करने को तैयार हैं।
4. बार-बार माफ़ी की रणनीति
गाँधी जी की यह प्रवृत्ति केवल व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए नहीं थी, बल्कि यह उनकी राजनीति और दर्शन का हिस्सा थी।
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वे अँग्रेज़ों को यह दिखाना चाहते थे कि उनका संघर्ष दुश्मनी नहीं बल्कि सुधार के लिए है।
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अहिंसा का मार्ग अपनाने के कारण वे प्रत्यक्ष टकराव से बचते और आत्मसमर्पण को नैतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते।
निष्कर्ष
गाँधी जी को “राष्ट्रपिता” के रूप में सम्मानित किया जाता है। लेकिन इतिहास हमें यह भी सिखाता है कि उनकी रणनीति में बार-बार अँग्रेज़ों से माफ़ी माँगना और दंड स्वीकार करना भी शामिल था। इसे कुछ लोग कमजोरी मानते हैं, तो कुछ इसे अहिंसा और सत्याग्रह की सबसे बड़ी ताक़त।
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