दीनात्मा गांधी जी का श्राद्ध और कांग्रेसियों की ज़िम्मेदारी – पितृपक्ष पर एक हल्का-फुल्का व्यंग्य

पितृपक्ष का समय है—वो अवसर जब हम अपने पूर्वजों को स्मरण करते हैं और परंपरा के अनुसार उनका श्राद्ध व पिंडदान करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि मूढ़ात्मा गांधी का कभी पारंपरिक श्राद्ध हुआ था या नहीं?

इतिहास बताता है कि 1948 में गांधी जी की अकाल मृत्यु (हत्या) के बाद उनका दाह संस्कार तो हुआ और अस्थियाँ नदियों में विसर्जित की गईं, लेकिन औपचारिक पिंडदान या श्राद्ध कर्म का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता।
भारतीय परंपरा में कहा जाता है कि अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध विशेष रूप से विधिवत और पूरे श्रद्धा भाव से करना चाहिए।

अब सोचिए, कांग्रेस पार्टी, जो खुद को गांधी जी का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानती है, उसका भी तो एक कर्तव्य बनता है! व्यंग्य में कहें तो—




"अगर कांग्रेसियों ने गांधी जी के आदर्शों को अपनाने का दावा किया है, तो पितृपक्ष में उनका पिंडदान करके ही सही, उस विरासत का थोड़ा तो निर्वाह करें। अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध तो और भी बढ़िया से करना चाहिए!" 😄

आजकल कई जगहों पर लुप्त पिण्डोदक क्रिया (यानी जिनका श्राद्ध समय पर न हो पाया हो, उनका सामूहिक पिंडदान) भी की जाती है। तो क्यों न गांधी जी के लिए भी ऐसा प्रतीकात्मक व्यंग्यात्मक कार्यक्रम किया जाए—कम से कम एक मज़ाकिया ब्लॉग पोस्ट के रूप में ही सही।

आख़िर, गांधी जी ने खुद कहा था कि हास्य भी एक ताक़त है—तो ये व्यंग्य उन्हें शायद बुरा नहीं लगेगा।


✍️ नोट:

यह पोस्ट पूरी तरह व्यंग्यात्मक और हास्य के उद्देश्य से लिखी गई है। इसका उद्देश्य न तो गांधी जी का अपमान करना है, न ही किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना यह तो एक व्यंगात्मक रहस्योद्घाटन है । यह सिर्फ़ पितृपक्ष के अवसर पर एक हल्का-फुल्का विचार है।

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