कहानी: “छह शत्रु, एक साधक”

बहुत समय पहले काशी नामक एक सुंदर गाँव में एक बालक रहता था — उसका नाम था आरव

आरव जिज्ञासु, समझदार और विनम्र था, परंतु उसके मन में भी कभी-कभी क्रोध, कामना, लोभ, मोह, ईर्ष्या, और द्वेष जैसे भाव उठते रहते थे।
एक दिन वह अपने गुरु चंद्राचार्य के पास गया और बोला,

“गुरुदेव! मैं इन अंदरूनी शत्रुओं पर विजय पाना चाहता हूँ। कृपया मुझे मार्ग दिखाइए।”

गुरुजी बोले,

“आरव! तुम छह परीक्षाएँ दोगे — हर परीक्षा में तुम्हें एक शत्रु को हराना होगा।”


 


1. क्रोध की परीक्षा

एक दिन आरव का मित्र विवेक गलती से उसका बनाया हुआ मिट्टी का मॉडल तोड़ देता है।
आरव को बहुत गुस्सा आता है, पर तभी उसे स्मरण होता है—

“जयेत् क्रोधम् अक्रोधेन” — अर्थात् क्रोध पर विजय अक्रोध से ही संभव है
📖 स्रोत

आरव गहरी साँस लेता है और कहता है,
“विवेक, कोई बात नहीं, हम मिलकर इसे फिर से बनाएँगे।”
उस क्षण उसने अपने पहले शत्रु को जीत लिया।


2. कामना की परीक्षा

गाँव में नया साइकिल मेले में आया। सबके पास नहीं था, पर आरव बहुत चाहता था।
उसे याद आया—

“काम को जीतने का मार्ग है — विवेक, संयम, ध्यान और सेवा।”
📖 स्रोत

आरव ने सोचा, “मुझे अभी नहीं चाहिए। पहले मैं मेहनत करके खुद कमाऊँगा।”
उसने गाँव के पुस्तकालय में बच्चों को पढ़ाने का कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी कामना शुद्ध प्रेरणा में बदल गई।


3. लोभ की परीक्षा

एक दिन मेले में सोने-सी चमकती घड़ी देखकर आरव के मन में लालच आया।
फिर उसे स्मरण हुआ—

“जयेत् लोभं संतोषेन्” — लोभ पर विजय केवल संतोष से संभव है।
📖 स्रोत

उसने घड़ी न खरीदी, बल्कि वह पैसा गरीब बच्चों के लिए किताबों पर खर्च किया।
उस दिन उसने जाना कि असली धन संतोष है, वस्तुएँ नहीं।


4. मोह की परीक्षा

आरव अपने गुरु से बहुत जुड़ा हुआ था। एक दिन गुरुजी दूसरे गाँव चले गए तो आरव रोने लगा।
पर उसने याद किया—

“जयेत् मोहम् ज्ञाननेन” — मोह को केवल ज्ञान से जीता जा सकता है।
📖 स्रोत

उसे एहसास हुआ कि सच्चा संबंध शरीर से नहीं, आत्मिक प्रेम और शिक्षा से होता है।
उसने गुरु की सीखों को अपने भीतर जीवित रखा और मोह पर विजय पाई।


5. ईर्ष्या की परीक्षा

स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में आरव दूसरे स्थान पर आया, जबकि उसका मित्र राघव प्रथम।
आरव को भीतर-भीतर जलन हुई, पर तभी उसे स्मरण हुआ—

“ईर्ष्या को हराने का मार्ग है दूसरों की सफलता में प्रसन्न होना।”
📖 स्रोत

उसने राघव के पास जाकर कहा, “तुमने बहुत अच्छा किया, मैं अगली बार और अच्छा करूँगा।”
उस दिन उसने ईर्ष्या को प्रेरणा में बदल दिया।


6. द्वेष की परीक्षा

कभी-कभी विद्यालय में एक छात्र रजित उससे कठोर व्यवहार करता था।
आरव के मन में भी क्रोध और विरोध भाव आया, पर फिर गुरुजी के शब्द गूँजे—

“द्वेष पर विजय करुणा और क्षमा से होती है।”
📖 स्रोत

आरव ने रजित से कहा, “मुझे तुमसे कोई वैर नहीं। अगर मैंने गलती की है तो क्षमा चाहता हूँ।”
उसकी नम्रता देखकर रजित भावुक हो गया और दोनों अच्छे मित्र बन गए।


उपसंहार

छह परीक्षाएँ पूरी हुईं — और आरव ने पाया कि असली जीत किसी प्रतियोगिता में नहीं,
बल्कि अपने मन पर नियंत्रण में है।

क्रोध को हराओ अक्रोध से,
कामना को संयम से,
लोभ को संतोष से,
मोह को ज्ञान से,
ईर्ष्या को प्रसन्नता से,
और द्वेष को करुणा-क्षमा से।

📚 सभी उद्धरण:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ