हर कण में भगवान: जब दृष्टि शुद्ध हुई, पति में परमेश्वर दिखे

 प्राचीन समय की बात है। एक नगर में सत्यव्रत नाम के गृहस्थ और उनकी पत्नी सुमन रहते थे। दोनों प्रतिदिन सत्संग में जाते थे, जहाँ एक महात्मा जी भक्तों को आत्मबोध का उपदेश देते थे।

महात्मा जी अक्सर कहते—

“हे माताओं! अपने पति में भगवान का रूप देखो। पति परमेश्वर है — क्योंकि वही तुम्हारे जीवन में सेवा, सहारा और साधना का माध्यम है।”

सभी स्त्रियाँ श्रद्धा से सिर झुका देतीं,
पर सुमन के हृदय में यह बात नहीं उतरती थी।
वह सोचती—

“कैसे मेरा पति परमेश्वर हो सकता है? वह तो मुझ जैसा ही एक साधारण मनुष्य है।”

इस विचार के कारण वह बार-बार पति से वाद-विवाद करती और भीतर से यह मानने को तैयार नहीं होती कि किसी मनुष्य में ईश्वर का अंश भी हो सकता है।

महात्मा जी उसकी मनोस्थिति भाँप गए।
उन्होंने भगवान से विनती की —

“हे प्रभु! इस भक्त का संशय नष्ट कीजिए। इसे वह दृष्टि दीजिए जिससे यह हर कण में आपकी उपस्थिति अनुभव कर सके।”

भगवान भक्त की प्रार्थना सुनकर प्रसन्न हुए।

एक दिन जब सुमन अपने घर में थी, तभी उसके सामने भगवान स्वयं प्रकट हो गए —
श्यामवर्ण, कमलनयन, पीताम्बर धारी, मुरलीमनोहर रूप में।



सुमन आश्चर्यचकित होकर उस दिव्य रूप को देखने लगी।
क्षणभर के लिए उसकी आँखें श्रद्धा से भर उठीं,
पर तभी मन में अहंकार ने सिर उठाया।
वह सोचने लगी—

“अरे! इतने काले तो मेरे घर के ‘कलुआ के पिता जी’ हैं… भगवान तो उनसे भी साधारण दिखते हैं!”

भगवान मुस्कराए।
क्षण भर में वह रूप ओझल हो गया।

उसी क्षण सुमन को अंतःकरण से बोध हुआ —
“भगवान किसी रूप में भी हो सकते हैं।
कण-कण में, जीव-जंतु में, अपने ही पति में भी।”

उसका हृदय परिवर्तित हो गया।
अब जब वह अपने पति को देखती, तो उसमें उसे ईश्वर का ही अंश दीखता।
वह समझ गई कि —

“जिस दिन दृष्टि पवित्र हो जाती है, उसी दिन भगवान सर्वत्र दिखने लगते हैं।”

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