बन्दर और चिड़िया की कहानी - लघुकथा

 संस्कृत में एक श्लोक है 

उपदेशो ही मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।

पयः पानं भुजङ्गानाम केवलं विषवर्धनं।।


अर्थात जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से उसका विष और बढ़ता है विष कम नहीं होता, उसी प्रकार मुर्ख को दिया गया उपदेश उसके क्रोध को शांत नहीं करता।




एक पेड़ पर एक गौरैया घोसला बनाकर रहती थी।  उसके घोसले में वह और उसके नन्हें  बच्चे  रहते थे।  गौरैया का परिवार सर्दी गर्मी व बरसात  से घोसले में सुरक्षित था।  


उस पेड़ पर २ बन्दर  भी रहते थे। बन्दर को न घोसला बनाने आता है न ही वो किसी गुफा में सुरक्षित रह सकते हैं। 

बरसात में बेचारे बंदरों का बड़ा बुरा हाल होता है। बरसात में इन्हे भोजन और आश्रय के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। 

एक बार की बात है बरसात के मौसम में बहुत ज्यादा बारिश हुई। बरसात से सभी जंतु पादप परेशान हो गए। अतिवृष्टि से पेड़ पौधे सूखने लगे तथा उनपर आश्रय लेने वाले जंतु भी भूख से मरने लगे। 

सौभाग्य से गौरैया जिस पेड़ पर रहती थी वो पेड़ अभी सुरक्षति था और कई जंतुओं का नवीन आश्रय बनने लगा था।

गौरैया पेड़ पर रहने वाले २ बंदरों से हँसी  ठिठोली किया करती थी। एक दिन फुहारे वाली बारिश हो रही थी ठंढ काफी बढ़ गयी थी दोनों बन्दर ठंड से काँप रहे थे। 

गौरैया ने बंदरों  मजाक किया कि तुम बंदरों को उछलने कूदने से फुर्सत कहाँ जो अपने लिए घर बना सको। अक्ल में तो तुम आदमी के बाद सबसे ज्यादा अक्लमंद हो फिर घर क्यों नहीं बना लेते। 

उस चिड़िया से कई बार ऐसा सुनने पर बन्दर गुस्साया और गौरैया के घोसले को उजाड़ दिया। 

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